कविता : वेदना
बंद किताब से सूखे फूल से मंद – मंद ताकती हसरतें दिलों की कभी मजबूर कभी सिसकती कभी तड़पती
Read Moreबंद किताब से सूखे फूल से मंद – मंद ताकती हसरतें दिलों की कभी मजबूर कभी सिसकती कभी तड़पती
Read Moreकभी किसी सिरे फिरे ने प्रभु श्रीराम के अस्तित्व और प्रामाणिकता पर प्रश्न लगाया था। तब उसे जवाब देने के
Read Moreक्या इत्तफाक है जाने कब से ख्वाहिश थी उन्हें सिर्फ अपना बनाने की उनके संग प्रेम के गीत गाने की
Read Moreकाश… तुम्हें मालूम हो सकता, कि तुम मेरे लिए क्या हो, सुकून-ए-रूह हो मेरा, दिल-ए-बेचैन की दवा हो, बताऊँ मैं तुम्हें
Read Moreजब तू खिलखिला कर हँसता है सोचती हूँ….. तेरी किलकारियों मे ही विद्यमान होते हैं सातों स्वर ! मासूमियत,चंचलता,कोमलता तेरी
Read Moreआज की नारी अबला नहीं है सबला हैं। हर वक्त अपनी कदम बढ़ाती अगला हैं। यहाँ प्राचीन काल में भी
Read Moreजब आवश्यक होती है अपनों के पास, लोग सटे रहते रहते हैं। खुशामद करतें हैं, हथेली पर लेकर चलते हैं
Read Moreसुबह की बेला में, सबको हर रोज, नई जिन्दगी मिलती है। चिड़ियों के आवाज़ से, माहौल गूँज उठती है। बच्चों
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