कविता~ जल रहा दीप
जल रहा दीप मद्धम मद्धम मन पुलक रहा चंदन चंदन। खोल रहे दृग सुमन द्वार मचल रहा दिल बन बहार
Read Moreजल रहा दीप मद्धम मद्धम मन पुलक रहा चंदन चंदन। खोल रहे दृग सुमन द्वार मचल रहा दिल बन बहार
Read Moreकिसी मित्र को रोकने का प्रयास किया गया है इन पंक्तियों के माध्यम से —— •••••••••••••••••••• यह दर्द आया कहाँ
Read Moreउम्मीद पर ही आज दुनिया चल रही है। उम्मीद पर ही एक उम्मीद पल रही है। उम्मीद को पुरा होते
Read Moreउम्मींद करता हूँ ……………………………….. उम्मींद करता हूँ हर वक्त तरसता हूँ जिन्दगी के पैमाने है उन्हीं से गुजरता हूँ। फूल
Read Moreमालिनी (सम छंद) नगण नगण मगण यगण यगण – 15 वर्ण रस रंग लय मोरा फ़ाग हारा जहाँ है सुख
Read Moreसमय, पुनः वापिस न आने के लिए उड़ा जा रहा है आदमी, मनचाही वस्तु को बार-बार पाने की चाहत में
Read Moreपहले पहल जब था मान उसका उस मध्यवर्गीय घर में , था उसमें भी माद्दा जब दर्शकों की भीड़ खींच
Read Moreये गम का सैलाब जिसने मेरे अंदर जन्म दिया एक शायरा को ये बचपन से मेरे साथ है मेरा हमनवाँ,
Read More