कविता

उम्मीद

 

उम्मीद ही उम्मीद है उम्मीद को मत तोड़िए
उम्मीद से उम्मीद का हरवक्त नाता जोड़िए
उम्मीद पर ही कायम है उम्मीद का संसार
उम्मीद है जीवन धरा उम्मीद को मत मोड़िये।।

देखिये उम्मीद पर गुमान भी न कीजिये
बैठकर उम्मीद पर इत्मीनान भी न लीजिए
कर्म ही उम्मीद का संचार करती है गौतम
परिवार को उम्मीद का प्याला भी दीजिए।।

उम्मीद हो हर सुबह से शाम से तो राम से
उम्मीद के सायें में विराम हो आराम से
उम्मीद में चलते हुए विचार हो आपसी
देश के उम्मीद पर उतरे सदा मुकाम से।।

जय की विजय हो उत्थान हो उल्लास हो
हर नौजवानों में माँ भारती का सुवास हो
गैर की महफ़िल में नाता किस उम्मीद से
जय हो माँ भारती का इसी में निवास हो।।

काव्य में श्रृंगार का लयवद्ध छंद सार हो
आमोद हो प्रमोद हो बीरों की ललकार हो
कायरों की बोलियाँ भटकी हुई टोलियाँ
माँ भारती के शान में जय की जयकार हो।।

महातम मिश्र (गौतम)

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

2 thoughts on “उम्मीद

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता !

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद आदरणीय विजय सर जी, आप के आशीष मन प्रेरित हो जाता है

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