आत्मकथा – दो नम्बर का आदमी (कड़ी 21)
इस कटु अनुभव के बाद एच.ए.एल. में मेरे बने रहने का कोई अर्थ नहीं था और मैं वहाँ से भागने
Read Moreइस कटु अनुभव के बाद एच.ए.एल. में मेरे बने रहने का कोई अर्थ नहीं था और मैं वहाँ से भागने
Read Moreएच.ए.एल. में मैंने लगभग साढ़े पाँच साल नौकरी की थी, परन्तु वहाँ से बाहर ट्रेनिंग पर जाने का अवसर केवल
Read Moreमैं एच.ए.एल. में बहुत खुश और संतुष्ट था। परन्तु तभी कुछ ऐसी घटनाएँ घट गयीं कि एच.ए.एल. से मैं बुरी
Read Moreए-ब्लाॅक, इन्दिरा नगर में एक कमरे वाले मकान में मैं लगभग डेढ़ साल रहा। फिर वहाँ असुविधा होने पर सी-ब्लाॅक
Read Moreसंघ के प्रचारकों के जो उदाहरण मैंने दिये हैं, वे विरले नहीं हैं। लगभग सभी संघ प्रचारक एक दूसरे से
Read Moreमहामना मालवीय मिशन, लखनऊ प्रतिवर्ष मालवीय जयन्ती के अवसर पर एक स्मारिका भी प्रकाशित करता है। इस स्मारिकाओं में विज्ञापन
Read Moreबाल निकेतन की व्यवस्था करते हुए हमने अनुभव किया कि बच्चों को रोटी-कपड़ा और शिक्षा से भी अधिक ‘प्यार’ की
Read Moreएच.ए.एल. में एक उच्च अधिकारी भी स्वयंसेवक थे। उनका नाम था श्री अरुणाकर मिश्र। वे बहुत योग्य थे और कम
Read Moreये थे मेरे एच.ए.एल. के कम्प्यूटर विभाग के संगी-साथी। विभाग के बाहर के भी अनेक सज्जनों से मेरा घनिष्ट परिचय
Read Moreहमारे सेक्शन में एक मात्र मुसलमान आॅपरेटर थे श्री सैयद अब्दुल हसन रिजवी। वे शिया थे और किसी नबाबी खानदान
Read More