क्षणिकाएं : राखी के रंग, हकीकत के संग
(1) भाई के घर से लौटी बहन उदास दिख रही थी राखी बांधने में कितना घाटा हुआ हिसाब लिख रही
Read More(1) भाई के घर से लौटी बहन उदास दिख रही थी राखी बांधने में कितना घाटा हुआ हिसाब लिख रही
Read Moreअभी राह में हूँ । ऐ बरखा! जरा थम के बरस । या लगा लेने दे, दो घूंट “मैं” के
Read Moreक्यों भटकते हो घृणा के और वैर के गलियों और चौबारों में? घूमना है तो घूमो प्रेम के गलियारों में
Read Moreबुज़दिल होने से अच्छा है मन को ताकतवर बनाया जाये कुछ घूँट हौसले के उम्मीद से भरकर जिन्दगी को रोज़
Read Moreजिंदगी के जोड़ घटाने में रिश्तों का गणित अक्सर जरूरत के वक़्त जाने क्यों शून्य हो जाता है और मन
Read More(1) ———- इधर माँ दिवस पर बच्चा दिन भर घर में माँ के नेह को तरसता रहा………… उधर दूसरी ओर समाजसेवी माँ का
Read More