हिन्दी गज़ल : गज़लोपनिषद
एक हाथ में गीता हो और एक में त्रिशूल | यह कर्म-धर्म ही सनातन नियम है अनुकूल | संभूति च
Read Moreएक हाथ में गीता हो और एक में त्रिशूल | यह कर्म-धर्म ही सनातन नियम है अनुकूल | संभूति च
Read Moreअपनी हिन्दी भाषा को, आगे और बढाना है पूरे विश्व में इसको, सम्मान दिलाना है हिन्दी की महानता जो, सबसे
Read Moreकाशी ना मेरी ‘ काबा ना तेरा है ‘ ये दुनिया तो पगले ‘कुछ दिन का बसेरा है ।। रह
Read Moreमुझको तुम भूल ही जाओ, अच्छा होगा मुझको अब याद न आओ, अच्छा होगा मानता था मानता हूं और मानूंगा
Read Moreफिसलकर नींद से टूटे हुए सपने कहाँ रक्खूँ ज़फ़ा की धूप में सूखे हुए गमले कहाँ रक्खूँ मुक़द्दस बूँद से
Read Moreग़ज़ल (दर्द दे वो चले पर दवा कौन दे) बह्र:- 212*4 दर्द दे वो चले पर दवा कौन दे, साँस
Read More