ग़ज़ल
सहर का ख़ाब देखा तीरगी में ख़ुशी से चीख़ उट्ठा बेख़ुदी में हुआ हैरान जुगनू देख कर मैं मुसलसल जी रहा
Read Moreकितने अनपढ़ भी हैं देखे कबीर होते हैं ग़रीब लोग भी दिल के अमीर होते हैं। ऐसे बच्चे भी हैं
Read Moreकंक्रीटों के जंगल में नहीं लगता है मन अपना जमीं भी हो गगन भी हो ऐसा घर बनातें हैं ना
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