कविता : एक सा दर्द
उसकी आँखों में फिर मैंने देखा दर्द का वो बादल जो उमड़ रहा था बाहर निकलने को बारिश की बुंदों
Read Moreउसकी आँखों में फिर मैंने देखा दर्द का वो बादल जो उमड़ रहा था बाहर निकलने को बारिश की बुंदों
Read Moreन होती कोई सीमा न होता कोई बंधन । मैं उड़के पल में चला जाता जहां कहता मेरा पागल मन
Read Moreउन्मुक्त गगन में उड़ते पंछी क्या कहते हैं सुना कभी आओ मिल कर सब एक साथ क्षितिज पार उड़ चलें
Read Moreन तो दिन था तुम्हारा कोई न रात, न कोई अपनी शाम ! न घर बार अपना याद तुम्हें न
Read Moreभ्रष्ट्राचारी के खिलाफ, फिर से आवाज उठाऐंगे और सभी मिल करके, फिर से वंदे मातरम् गाऐंगे सर कटवा देंगे लेकिन,
Read Moreहे धरती माता पापियों को, क्यों देती तू जन्म खून की होली खेल रहे है जो, कैसे होगा अंत द्वापर
Read Moreसाँप पाल कर बना संपेरा, काला दिवस मनाता है पाक नाम नापाक इरादा, कैसे पाक कहाता है दशहत गर्दो का
Read Moreअनुष्टुप छंद “गुरु पंचश्लोकी” सद्गुरु-महिमा न्यारी, जग का भेद खोल दे। वाणी है इतनी प्यारी, कानों में रस घोल दे।।
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