जननी
तू ममता है तू है माता पीड़ा सह सृष्टि रचाई है तू ही जननी कहलाई है | तेरी कोख में
Read Moreदेखते देखते तूँ कली बन सवरने लगी। फूल बनकर हर गली में महकने लगी। इस सुगंध का ऐसा असर हुआ
Read Moreप्यार था अब छल है अविश्वाश है रिश्तों की मौत है मौत की चीख है चीख में छुपा दर्द है
Read Moreअब मैं पुश्तैनी घर कहा जाता हूँ । हाँ मैं तुम्हारे पुरखों को पनाह दिया करता था । अब तुम्हारी
Read Moreजीवन की तमाम व्यस्तताओं के बाद भी जेहन में कुलांचे भरने ही लगती कोई कविता कभी ठीक अहले सुबह सूरज
Read Moreरिश्ते -नाते न बदले अब – बदल गया व्यवहार / हाव भाव उनके अब देखो – कैसा शिष्टाचार / चाय
Read Moreइन आंसूओं की अब इस जमाने में ‘कद्र’ नहीं होती, पर इन आँखों को भी छलके बिना, ‘सब्र’ नहीं होती,
Read Moreराह पर राहगीर बनाकर भेज दिया मुझको। चलता रहा दिन-रात कोई ना मिला मुझको। यहसास हो रहा तुम हर-पग-पर हो
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