“कुंडलिया”
“कुंडलिया” चहक चित्त चिंता लिए, चातक चपल चकोर ढेल विवश बस मे नहीं, नाचत नर्तक मोर नाचत नर्तक मोर, विरह
Read More“कुंडलिया” चहक चित्त चिंता लिए, चातक चपल चकोर ढेल विवश बस मे नहीं, नाचत नर्तक मोर नाचत नर्तक मोर, विरह
Read Moreअब प्यार के मुनासिब , कहीं कोई दिल नहीं मिलता, अब दिल के आँगन में प्यार का गुल भी
Read Moreक्षितिज की और संध्या काल में निहारती नारी के मन में उठते भावो का ब्यान करती हुई यह कविता —–
Read Moreबजट से पहले– आम बजट हो खास बजट हो राहत का अहसास बजट हो खाना मिले पेट भऱ सबको छत
Read Moreस्त्री हिचकियाँ की सखी साथ फेरो का सकल्प दुःख सुख की साथी एकाकीपन खटकता परछाई नापता सूरज पहचान वाली आवाजों
Read Moreब्यथा अपने मन की बताऊ तो किसे बताती भी हू तो बताकर क्या करू आज के इस दौर मे उलझन
Read Moreजब से नन्हा सा शिशु घर पर मेरे आया गुलशन में फूलों सा आँगन मेरा महकाया कोना -कोना महका जब
Read Moreधुंध की चादर पसारे धरा के रूप को सभाले धूप हो गई है गुलाबी मौसम अंगराई मारे बादल श्वेत परिधान
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