लघुकथा – संस्कार
बस स्टॉप पर बस रुकी। यात्रियों की भीड़ में एक वृद्ध किसी तरह कंडक्टर की सहायता से चढ़ा। बस चल
Read Moreबस स्टॉप पर बस रुकी। यात्रियों की भीड़ में एक वृद्ध किसी तरह कंडक्टर की सहायता से चढ़ा। बस चल
Read More“बारिश के दिनों में बचपन में हमने कागज की नाव खूब चलाये हैं। बड़ा मजा आता था। तब हम नाव
Read Moreमहिमा देखने में सुंदर तो थी ही, उसका स्वभाव भी बहुत मधुर था, परंतु दो साल पहले पिताजी की मृत्यु
Read More“अरे! भइया! तुमने तो लूट मचा रखी है।बीस रुपये की ककड़ी 40 रुपये किलो दे रहे हो।”मेम साहब अपने कुत्ते
Read Moreआज अध्यापक कक्षा में कदम रखते ही बच्चों से बोले – ” बच्चो ! आज सभी अपने–अपने पिता जी को
Read Moreस्नेहा का जन्मदिन था, उसने बड़े स्नेह से आमंत्रित भी किया था. तैयार होकर अनु निकलने को हुई तो बारिश
Read Moreएक मंदिर में सब लोग पगार पर काम करते थे, घंटा बजाने वाला भी पगार पर था.घंटा बजाने वाला आदमी
Read Moreबात लगभग 65 साल पहले की है. मैं छोटी-सी बच्ची थी. मेरी एक सहेली ने हारमोनियम सीखने का मन बनाया.
Read More“यह तो वही जगह है न, जहां हम नाव में सवार होकर डोलते थे! कैसी सूख-साख कर बंजर-सी लग रही
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