कुण्डली/छंद

कुण्डली/छंद

वन गमन (तंत्री छंद)

जनक दुलारी, हे सुकुमारी,कैसे तुम,वन को जाओगी।पंथ कटीले,अहि जहरीले,कैसे तुम,रैन बिताओगी।।सुन प्रिय सीते, हे मनमीते,आप वहाँ,रह ना पाओगी।विटप सघन है,दुलभ

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