ग़ज़ल
खुशियों के मौसम में लगती, मायूसी सी छाई है।पेशानी पर बल हैं सबके ,कमरतोड़ महँगाई है।। टँगी अलगनी पर कोने
Read Moreवक्त बेवक्त हमें किसी की भीजरुरत पड़ सकती है,किसी की अहमियत तब समझ में आती है।हमें बड़ा गुमान रहता हैअपने
Read Moreकलम उठाई है स्याही नेशब्दों की आड़ी तिरछी रेखाएं खींची हमने,अंतर्मन के भावों ने जैसेपूरे कर दिए जैसे हमारे सपने।मन
Read Moreफिर वही क़िस्सा सुनाना तो चाहिए फिर वही सपना सजाना तो चाहिए यूँ मशक़्क़त इश्क़ में करनी चाहिए जाम नज़रों
Read Moreगँवाई ज़िंदगी जाकर बचानी चाहिए थी बुढ़ापे के लिए मुझको जवानी चाहिए थी समंदर भी यहाँ तूफ़ान से डरता नहीं
Read Moreजिंदगी जिंदगी नही मेरी मगर तुम्हें क्यो मलाल दूँ खुश रहो मैं भी खुश हूँ बोल कुछ लम्हें खुशहाल दूँ
Read Moreनेताओं के दंश, बड़े विध्वंसक हैं. आएंगे बनके रक्षक, पर भक्षक हैं. इनकी सिर्फ कथनी-करनी ही नहीं, ये मानव हैं,
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