सावन विरह-गीत
सावन विरह-गीत सावन मनभावन तन हरषावन आया। घायल कर पागल करता बादल छाया।। क्यों मोर पपीहा मन में आग लगाये।
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Read Moreमनहरण घनाक्षरी “होली के रंग” होली की मची है धूम, रहे होलियार झूम, मस्त है मलंग जैसे, डफली बजात है।
Read Moreग़ज़ल (हिन्दी हमारी जान है) बह्र:- 2212 2212 हिन्दी हमारी जान है, ये देश की पहचान है। है मात जिसकी
Read Moreग़ज़ल (भाषा बड़ी है प्यारी) 22 122 22 // 22 122 22 भाषा बड़ी है प्यारी, जग में अनोखी हिन्दी,
Read Moreग़ज़ल (दर्द दे वो चले पर दवा कौन दे) बह्र:- 212*4 दर्द दे वो चले पर दवा कौन दे, साँस
Read Moreअनुष्टुप छंद “गुरु पंचश्लोकी” सद्गुरु-महिमा न्यारी, जग का भेद खोल दे। वाणी है इतनी प्यारी, कानों में रस घोल दे।।
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Read Moreसवाई छंद/समान सवैया/32 मात्रिक छंद “वन्दना” इतनी ईश दया दिखला कर, सुप्रभात जीवन का ला दो। अंधकारमय जीवन रातें, दूर
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Read Moreमौक्तिका (चीन की बेटी) 2*8 (मात्रिक बहर) (पदांत ‘कर डाला’, समांत ‘आ’ स्वर) यहाँ चीन की आ बेटी ने, सबको
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