कहानी

अजेय शक्ति

‘छोड़ दो मुझे। तुम हमारे भाई जैसे हो!’
‘चुप रह मास्टरनी, चुपचाप चल।’
जोर की आवाजें सुनकर बाजार में सभी लोगों का ध्यान उधर चला गया। दो मुस्टंडे लड़कों ने एक युवती के दोनों हाथों को दोनों ओर से कसकर पकड़ा हुआ था और उसे एक तरफ खींच रहे थे। उनका तीसरा साथी गुंडा आगे-आगे अकड़ता हुआ चल रहा था। युवती रो रही थी, गिड़गिड़ा रही थी, और लोगों को सहायता के लिए पुकार रही थी, परन्तु किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि उन गुंडों को रोके या पुलिस को फोन करे।
तभी एक सामने से एक लम्बा सा लड़का आया। उसने आगे-आगे चलते हुए गुंडे से पूछा- ‘इसको क्यों पकड़ रखा है?’
‘तू जा अपना काम कर। क्यों मरना चाहता है?’ गुंडा अकड़ता हुआ बोला।
‘मैं कहता हूँ इसको फौरन छोड़ दो। नहीं तो अच्छा नहीं होगा।’
‘अच्छा तो तू नहीं मानेगा।’ यह कहते हुए गुंडे ने पलक झपकते ही चाकू निकाल लिया और उसे लहराता हुआ, उस लड़के की तरफ बढ़ा।
इधर वह लड़का भी लड़ाई के लिए तैयार हो गया, जैसे उसके लिए यह रोज का काम हो। गुंडे ने चाकू वाला हाथ चलाया, लेकिन लड़के ने उसके हाथ की कलाई को हवा में ही कसकर पकड़ लिया। फिर उसका दायाँ पैर अपनी जगह से उछला और उसके जूते की एड़ी गुंडे के गुप्तांग पर पड़ी। ऐसा होते ही गुंडे के हाथ से चाकू छूट गया और उसके दोनों हाथ अपने गुप्तांग से चिपक गये। दर्द के मारे वह जमीन पर ही बैठ गया।
उसका यह हाथ देखकर उस लड़की को पकड़े हुए दो गुंडों में से एक गंुडा बड़ा सा चाकू लेकर गालियां देते हुए उस लड़के की तरफ बढ़ा। वह लड़का बोला- ‘इसका हाल देखा है? वह तो मैंने धीरे से मारा है, जरा जोर का पड़ जाता, तो फिर यह किसी महिला की तरफ आँख उठाकर देखने लायक नहीं रहता। तुम भी आना चाहो तो आ जाओ।’
यह बात सुनकर वह गुंडा कुछ ठिठका, लेकिन वह आसानी से हार मानने वाला नहीं था। इसलिए चाकू लेकर लपका। उस गुंडे ने चाकू का वार पूरी जोर से किया, लेकिन लड़के ने उसे बगल देकर बचा लिया और फिर उसकी कलाई पकड़कर उसे जोर से घुमा दिया। इससे उसका चाकू छूट गया और वह पीछे घूम गया। तभी उसने उस गंुडे की पीठ पर जोर की लात मारी, जिससे वह औंधे मुँह गिर पड़ा।
लड़के ने उसका गिरा हुआ चाकू उठा लिया। फिर उस तीसरे गुंडे की तरफ देखा, जो उस लड़की को अभी भी पकड़े हुए था। वह अपने दोनों साथियों का हाल देख चुका था। फिर जब उसी लड़के को चाकू लेकर अपनी तरफ आते देखा, तो वह लड़की को छोड़कर भाग खड़ा हुआ।
तभी एक और लड़का आया और उस लम्बे लड़के से बोला- ‘गोपाल जी, आप! यह क्या हो रहा है?’
‘पवन जी, ये गुंडे इस बहिन को पकड़कर ले जा रहे थे। अब तत्काल पुलिस को बुलाओ। इनको थाने ले जाना है।’
इतना सुनते ही पवन पुलिस को फोन करने लगा और गोपाल दोनों गुंडों के पास खड़ा हो गया कि वे कहीं भाग न जायें। गंुडों ने भागने की बहुत कोशिश की परन्तु गोपाल और पवन ने उनको नहीं भागने दिया। आस-पास लोग भी इकट्ठे हो गये थे।
गोपाल ने उन लोगों से कहा- ‘कोई भी इन गुंडों का विरोध नहीं करता, तभी इनकी हिम्मत गंुडागिर्दी करने की होती है। आप कम से कम पुलिस को तो फोन कर सकते थे।’ लोग सिर झुकाये उनकी बातें सुन रहे थे। उनमें से कई ने अब गोपाल और पवन को पहचान लिया। वे सुबह सुबह खाकी नेकर पहनकर आते-जाते हुए दिखाई देते थे। वे नित्य शाखा जाते थे। गोपाल ने उनको बताया कि शाखा में व्यायाम के साथ-साथ गुंडों से निपटने यानी आत्मरक्षा की कला भी सिखायी जाती है।
तब कई लोगों ने तय किया कि वे स्वयं भी शाखा जाया करेंगे और अपने बच्चों को भी भेजेंगे, ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति आने पर वे गुंडों का मुकाबला कर सकें।
थोड़ी देर में पुलिस आ गयी। गोपाल ने संक्षेप में पुलिस को सारा हाल बताया। उस लड़की, जिसका नाम सरिता था, ने भी उनकी बातों की पुष्टि की। तब पुलिस उन दोनों गुंडों को पकड़कर ले गयी।
साथ में गोपाल, पवन और सरिता भी थाने गये। वहाँ उनकी रिपोर्ट लिखी गयी और गुंडों को हवालात में डाल दिया गया। पुलिस ने गोपाल और पवन की बहुत प्रशंसा की और कहा कि अगर सभी लोग इतना साहस दिखायें तो गुंडागिर्दी समाप्त ही हो जाएगी। पुलिस अधिकारी ने बताया कि अब इन पर केस चलेगा और गवाही के लिए आपको भी अदालत आने की आवश्यकता होगी। गोपाल ने अपना मोबाइल नम्बर पुलिस को दे दिया और जरूरत पड़ने पर तुरन्त पहुँचने का भरोसा दिलाया। उसने कहा कि किसी भी तरह इनको सजा दिलवानी चाहिए।
गोपाल ने सरिता से कहा- ‘बहिन अब जाओ। अब कोई आपको परेशान नहीं करेगा। अगर कोई करे, तो मुझे फोन कर लेना।’ यह कहकर उसने अपना मोबाइल नम्बर सरिता को लिखकर दे दिया।
सरिता ने कुछ हिम्मत करके कहा- ‘भैया, क्या आपकी शाखा में लड़कियों को भी आत्मरक्षा का तरीका सिखाया जाता है? मैं सीखना चाहती हूँ।’
गोपाल को यह सुनकर बहुत खुशी हुई। बोला- ‘बहिन, हमारी शाखा में महिलायें नहीं आतीं, लेकिन उनकी शाखा अलग से लगती है। आप वहाँ आ सकती हैं। वहाँ सब सिखाया जाता है।’ यह कहकर उसने सरिता को राष्ट्र सेविका समिति की शाखा लगने का स्थान और समय बता दिया और वहाँ की मुख्य शिक्षिका का नाम और मोबाइल नम्बर भी बता दिया।
सरिता को यह जानकर बहुत खुशी हुई और कहा- ‘भैया, अब मैं रोज वहाँ जाया करूँगी और अपनी सहेलियों को भी साथ लाने की कोशिश करूँगी।’ यह कहकर वह प्रसन्नता और आत्मविश्वास के साथ अपने घर की तरफ बढ़ गयी।

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com

4 thoughts on “अजेय शक्ति

  • लीला तिवानी

    प्रिय विजय भाई जी, सच है ”अगर सभी लोग इतना साहस दिखायें तो गुंडागर्दी समाप्त ही हो जाएगी”. समस्या के साथ-साथ समाधान कहानी का प्रमुख आकर्षक बिंदु है. बधाई.

  • सविता मिश्रा

    बहुत बढ़िया कहानी …आत्मविश्वास सबसे बड़ी ताकत है

  • मनजीत कौर

    bahut sabak dayak aur prayrak kahani ,har insaan ko chahe ladka ho ja ladki ,ko aatam rakhsha ki kala sikhni chahiye ta ki mushkil ghadi me,aise bure logo se ,apni rakhsha ke saath saath aur masoom logo ki rakhsha bhi kar sake.

    • विजय कुमार सिंघल

      धन्यवाद, बहिन जी.

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