कहानी

कलयुगी पुत्र

एक बूढी औरत , कुम्भ के मेले में बैठी रो रही थी । वह बहुत परेशान लग रही थी और बार बार यही बात दोहरा  रही थी ” नहीं… मेरा बेटा जरूर आएगा… वो मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकता… उसने कहा था- माँ तू यहीं बैठ मैं अभी आया।” वो बेचारी पागलो की तरह आते-जाते लोगो से अपने बेटे के बारे में पूछ रही थी। सुबह से शाम हो गई और वह वहीं पर बैठी अपनी बूढ़ी आँखों से अपने बेटे की राह देखती रही ।

ये एक धार्मिक मेला था जहाँ लोग दूर-दूर से लाखो की तादाद में एकत्र होकर श्रद्धा भाव से इसे मानते है। यहाँ कई लोग तो बदकिस्मती से अपनों से बिछुड़ जाते हैं, पर कई कलयुगी, पापी पुत्र अपने लाचार माता-पिता को धोखे से वहां छोड़ जाते है। वहां वो औरत अकेली नहीं थी, उस जैसी और भी कई बजुर्ग महिलाये और पुरुष इसी दुःख से गुजर रहे थे जिन की औलाद उन्हें बेसहारा वहां छोड़ गई थी।


पुलिस कर्मचारी सभी गुमशुदा लोगो को एक शामयाने के नीचे इकठ्ठा कर रहे थे। जब वो उस औरत के पास पहुचे, तो वह बुरी तरह खांस रही थी और यही बडबडा रही थी “मेरा बेटा जरूर आएगा… वो ऐसा नहीं कर सकता.” कर्मचारी ने कहा “माई, अब किस बेटे का इंतजार कर रही है, यहाँ तो हजारो केस देखे हैं… अब कोई नहीं आएगा तुझे लेने।” ये सुनकर वो बेहोश हो गई और उसे शामयाने में पहुचाया दिया गया ।


जब वह होश में आई तो उसने बताया कि उसका नाम गिरजा देवी है और गुजरात की रहने वाली है। उसका बेटा लगभग चार वर्ष का था, जब उसका पति गुजर गया। साँस की बीमारी होने के बावजूद उसने लोगो के घरो में काम करके अपने बेटे की परवरिश की, उसे पढ़ाया लिखाया, उसकी शादी की। शादी होते ही उसका बेटा बदल गया. जो पैसे वो घर खर्च के लिए माँ को देता था वो अपनी पत्नी को देने लगा। अपनी पत्नी की तरह तरह की फरमाइशे पूरी करता पर माँ का कभी हाल न पूछता। माँ अगर दवाई के लिए पेसे मांगती तो वो उसे उसकी बहु के पास भेज देता और बहु उसे कई बाते सुना कर कभी तो पांच दस रूपये उसके हाथ रख देती और कभी कुछ भी न देती। अगर गिरजा देवी को खांसी आती तो बहू उसे और उसकी बीमारी को कोसती, उसे बुरा भला कहती।

गिरजा देवी को रोटी पानी भी ढंग से नसीब न होता। वो बिना दवाई के बीमारी में तड़पती रहती। आंसू बहाते हुए गिरजा देवी ने बताया एक दिन उसका बेटा उसके पास आया और बोला- “माँ तुझे तीर्थ यात्रा करवाना चाहता हूँ”. गिरजा देवी ख़ुशी से झूम उठी कि देर से ही सही उसके बेटे को उसका ख्याल तो आया। और आज उसका बेटा उसे इस हाल में वहा छोड़ कर चला गया। 
दुसरे दिन गिरजा देवी इस सदमे को न सहन करती हुई, इस दुनिया को सदा के लिए छोड़ गई ।

10 thoughts on “कलयुगी पुत्र

  • वाह, माँ की ममता होती ही कुछ ऐसी है, इश्वर एसा लड़का किसी को न दें.

    • मनजीत कौर

      आप ने बिलकुल सही कहा कमल भाई ,इश्वर ऐसी जालिम औलाद किसी को न दे | कहानी पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया

  • युवा भारत

    अतिशोभनम् लेखन । समाज मे बदलाव के लिये आवाश्यक है यह प्रेरक कहानियाँ ….

    • मनजीत कौर

      कहानी पसंद करने के लिए बहुत शुक्रिया

  • a very heart breaking story . kuchh log itna neeche gir sakte hain!! shame!shame!shame.

    • मनजीत कौर

      ji gurmail bhai aisi kadvi sachayia dil chhalni kar jati hai ,jise hum sun nahi paate ,par jo log apne mata pita se aisa salook karte hai shayad unke dil pathar ke hote hai . .kahani pasand karne ke liye bahut shukriya.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी और प्रेरक कहानी.

    • मनजीत कौर

      honsla afjaee ke liye bahut bahut shukriya vijay bhai

      • गुरमेल भमरा लंदन

        मंजीत जी ने यह कहानी लिखी है , पड़ कर मन को एक दर्द सा महसूस हुआ .ऐसे लोग भी दुनीआं में हैं जो विचारी बूड़ी माँ को इतनी बेदर्दी से छोड़ सकते हैं . अगर इश्वर के घर इन्साफ है तो ऐसे लोगों को सजा अवश्य मिलेगी .

        • मनजीत कौर

          हौंसला अफजाई के लिए दिल की गहराईओं से शुक्रिया |

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