कविता

निर्वात

सुनो !!
तुम्हारी अनुपस्थिति को मैंने महसूस किया 
बिल्कुल इस तरह 
जैसे मेरा जीवन “निर्वात” हो,..

कभी कहीं पढ़ा था
जब अंतरिक्ष (स्पेस) के किसी आयतन में कोई पदार्थ नहीं होता
तो कहा जाता है
कि वह आयतन “निर्वात” (वैक्युम) है।

निर्वात की स्थिति में गैसीय दाब,
वायुमण्डलीय दाब की तुलना में बहुत कम होता है।
जैसे तुम्हारे बिना मेरे जीवन में भावनाओं और इच्छाओं का दाब
बाहरी दुनिया के भावनात्मक और ऐच्छिक दाब से बहुत कम हो गया था,..

कहीं ये भी पढ़ा था,..
निर्वात में प्रकाश विद्युत और ध्वनि आदि का वेग भी बहुत कम हो जाता और चुम्बकत्व भी,..
पर सच कहू मैं नही माप पाई अपने जीवन के निर्वात में
प्रकाश,ध्वनि या विद्युत का वेग या कोई आकर्षण,..

क्यूंकि तुम्हारे बिना मेरे जीवन में प्रकाश आया ही नही,..
और ना ही सुन पाई अपने मन की भी आवाज़,..
और ना ही महसूस पाई अपने ही मन कि तरंगों को,..
और ना रहा किसी से किसी भी तरह का आकर्षण,..

और कहीं ये भी पढ़ा था,..
अंतरिक्ष (स्पेस) का कोई भी आयतन पूर्णतः निर्वात हो ही नहीं सकता,.
ये बात बिल्कुल सच है
क्यूंकि मेरे जीवन के निर्वात मे भी मौज़ूद रही हमेशा एक “उम्मीद”,..

और इसी उम्मीद ने मुझे अब तक जिंदा रखा,..
वरना तुम्हारे इंतज़ार के दिनों में भावशून्यता से
मेरे जीवन के निर्वात में ही मेरा दम घुट गया होता,..
और खत्म हो जाती मेरी दुनिया,मेरा अंतरिक्ष और मेरा सब कुछ,…

प्रलय से पहले ही,…… प्रीति सुराना

(निर्वात की परिभाषा विकिपीडिया में मौजूद है,..)

4 thoughts on “निर्वात

  • कविता बहुत अच्छी है और दिमाग पे जोर देकर समझने वाली है . वैकिऊम में भी आशा की किरन यानी उम्मीद रही . वाह , किया बात है .

    • प्रीति सुराना

      reply

  • विजय कुमार सिंघल

    गहरे अर्थ वाली कविया. वाह !

    • प्रीति सुराना

      thanks

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