गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : यूँ न मुझसे रूठ जाओ 

यूँ  न मुझसे रूठ  जाओ, मेरी जाँ निकल न जाये

तेरे इश्क का जखीरा, मेरा दिल पिघल न जाये.

 

मेरी नज्म में गड़े है, तेरे प्यार के कसीदे

मै जुबाँ पे कैसे लाऊं, कहीं राज खुल न जाये

 

मेरी खिड़की से निकलता, मेरा चाँद सबसे प्यारा

न झुकाओ तुम निगाहे, कहीं रात ढल न जाये.

 

तेरी आबरू पे कोई, कहीं दाग लग न पाये

मै अधर को बंद कर लूं, कहीं अल निकल न जाये.

 

ये तो शेर जिंदगी के, मेरी साँस से जुड़े हैं

मेरे इश्क की कहानी, ये गजल भी कह न जाये.

 

ये सवाल है जहाँ से, तूने कौम क्यूँ बनायीं

ये तो जग बड़ा है जालिम, कहीं खंग चल न जाये.

 

—- शशि पुरवार

6 thoughts on “ग़ज़ल : यूँ न मुझसे रूठ जाओ 

  • शशि पुरवार

    आप सभी सुधिजनो का बहुत बहुत धन्यवाद, आपने अपनी अनमोल प्रतिक्रिया से हमें नवाजा है . आभार

  • Raj kumar Tiwari

    न झुकाओ निगाहे कहीं रात ढल न जाये….. बहुत अच्छी पक्ति लगी। गजल अच्छी है।

  • डॉ ज्योत्स्ना शर्मा

    सुन्दर ,मोहक प्रस्तुति !

  • अजीत पाठक

    गजल अच्छी है.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी ग़ज़ल. इसमें सरल शब्दों में मन की भावनाओं को बखूबी प्रकट किया गया है. बधाई !

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