धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

खेतों में उगते भगवान

हमारे देश के पतन के मुख्य कारणों मेंएक प्रमुख कारण यह भी रहा है की यंहा अनेक स्वार्थी व् धूर्त लोगो ने अपनी समझ से कई अवतार,देवता , भगवान आदि पैदा कर के लोगो का शोषण किया , जनता को अकर्मण्य, अन्धविश्वास , अनैतिक व् अशिक्षा के बन्धनों में जकड़े रखा।

ये देवता ,अवतार आदि और कोई नहीं बल्कि उन धूर्त लोगो के दिमाग की उपज थी जो आम जन को सदा अँधेरे में रखना चाहते थे ,ये देवता वास्तव में उस समय के बलवान और शक्तिशाली व्यक्ति रहे होंगे जिनके भक्त ये लोग रहे होंगे और ,जिनके चापलूस ये धूर्त लोग रहे होंगे और उसी चापलूसी में इन लोगो ने अपने मालिको को ईश्वर,देवता या भगवन की उपाधि दे दी ताकि ये लोग सदा पूजा के पात्र बने रहे और इनके अवतारों के बल पर चापलूसो की आने वाली पीढ़ियाँ भी मुफ्त का खा सके।

पर इसका दुष्परिणाम यह हुआ की देश भर में देवताओ और भगवानो की बाढ़ आ गई जिससे अन्धविश्वास और गहराता गया, अशिक्षा के साथ अन्धविश्वास ने कोढ़ पर खाज का काम किया । देश और रसातल में धंसता चला गया ,विडंबना देखिये आज भी इन देवी देवताओं के पैदा होने की घटनाये सामने आती रहती हैं ।
अशिक्षित और गरीब होने के कारण लोग बड़ी आसनी से मुर्ख बन जाते हैं और इन धूर्तो के झांसे में आ जाते हैं।
अभी कुछ दिन पहले एक पाखंडी साधू ने एक स्थान पर खजाना दबे होने की बात कही थी , सभी देश वासी उसके बहकावे में आ गए और उसके सपने को सच मान बैठे थे ।
सरकार भी उसके झांसे में आ गई और खुदाई शुर कर के देश विदेश में अपनी अज्ञानता के कारण उपहास का कारण बनी।
न खजाना मिला और न ही उस धूर्त पुजारी को गिरफ्तार ही किया गया अन्धविश्वास फ़ैलाने के लिए , जिस कारण ऐसे किस्से और भी समाने आने लगे ।

आज के ही अखबार में एक खबर दी की आगरा में एक गाँव में कुछ लडकियों को सपना आया की उन्हें एक मूर्ति दिखाई दी है और उस जगह एक मंदिर बनना है, ये लडकियां अन्न जल त्याग के देवी बनी हुई उसी जगह बैठी हैं , जिनमे से कुछ की हालत अब ख़राब होती जा रही है ।
गौर तलब है इन’ देवी’ लडकियों में से कुछ ही स्कुल जाती हैं और बाकी की लड़कियां खेतीबाड़ी करती हैं या गोबर उठती हैं ।

कमाल ये है की ये ‘देवियाँ’ गाँव की जरुरत स्कुल या हास्पिटल नहीं बल्कि ‘ मंदिर’ बनवाना चाहती हैं ।
अब सोचिये की ये किसकी धूर्तता होगी जो अनपढ़ और भोली भाली लडकियों को देवी बना के उन्हें भूखा मार रहा है और अपने धंधे का जुगाड़ कर रहा है?

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?

4 thoughts on “खेतों में उगते भगवान

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    केशव जी आप हमेशा अच्छा लिखते हैं , और सही लिखते हैं . हमारे देश के पाखंडी लोग जनता का खून चूस रहे हैं . देखो न लाखों साधू संत धर्म आस्थानों पर बैठे मुफ्त का खा रहे हैं . और भोले भाले लोग उनके आगे माथा टेक कर उन से आशीर्वाद चाहते हैं . भारत की ईकाउनोमी को कितना नुक्सान होता है ? यह बेकार लोग देश का किया संवारते हैं ? यह लोग भंग चरस सल्फा न जाने कैसे कैसे नशे खा कर आँखें मूँद कर बैठे रहते हैं और इन को सरकार भी कुछ नहीं कहती . एक मजदूर सारा दिन काम करके भी अपना और अपने परिवार का पेट नहीं भर सकता और यह पाखंडी लोग छतीस परकार के भोजन खाते हैं और फिर अपने को ऊंचा समझते हैं . हम यहाँ बैठे हैं कोई गोरा संत नहीं है और ज़िआदा लोग चर्च जाने से भी हट गए , और यह मुलक दुनीआं के अमीर देशों में एक है . इसी लिए तो दुनीआं पर राज कर गए ! हम इन को अकिऊज़ करते नहीं थकते कि इन्होने भारतीओं को तकसीम किया और राज किया . कियों न करते भाई ? यहाँ देश मूर्खों से भरा हो कौन उनको लूटना नहीं चाहेगा ? दुःख की बात यह है बड़े बड़े धर्म गुरु भी इस गंद को साफ़ नहीं करते . मंदिरों पर इतना सोना चांदी जमा हुआ है कि मुझे कोई हैरानी नहीं होती कि मेहमूद गजनवी कियों बार बार हमले करता रहा और लूटता रहा. कितने धर्म गुरु पिछले कुछ वर्षों में ऐयाशी करते पकडे गए ? देख देख कर भी हमें अकल नहीं आती . केशव लिखते रहिये . एक शख्स भी सुधर जाए तो समझो आप की कलम कामयाब है .

    • विजय कुमार सिंघल

      आपकी बात में दम है, भाई साहब.

  • सचिन परदेशी

    अंधश्रद्धा पर उंगली उठाने पर श्रद्धा वाले भी आहात हो ही जाते हैं ! क्यूँ की श्रद्धा भी अंधी ही होती है ! फर्क बस इतना है की वह स्वीकार्य होती है ! और इसीलिए जो आपके लिए स्वीकार्य नहीं वाही औरों के लिए श्रद्धा हो सकती है ! और जो आपको स्वीकार्य है वह औरों के लिए अंध श्रद्धा हो सकती है !

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख केशव जी। मैं आपसे सहमत हूं।

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