संस्मरण

संस्मरण : मोह क्षेत्रीयता का

Saturday, 17 December 2011….

बैंगलोर में “ 26th Indian Engineerning Congress “ में शामिल होने पुरे हिन्दुस्तान से Engineers और उनके परिवार , और T.C.S , Isro , malu group , Surya Construction , Consultancy Company etc के guset और Russia , Japan , Lanka , Nepal , korea etc. से delegate – guest आये हुए थे , एक नेता ( जिन्हें प्रोग्राम का उद्दघाटन करने के लिए बुलाया गया था ) अपना भाषण देने मंच पर आये और भाषण English में शुरू करते है , थोड़े देर में उनका भाषण English से कन्नड़ में बदल जाता है…. कन्नड़ , जब हम बिहारियों को समझ में नहीं आ रहा था , तो उन विदेशियों को क्या आ रहा होगा…. ? नेता जी को जब English आती थी , वे अपनी क्षेत्रीय भाषा का प्रयोग क्यों किये थे ,मैं आज भी समझ नहीं पा रही हूँ …. ? अगर बतमीजी नहीं होती , मैं उसी समय उस नेता से सवाल करती , यह जगह vote मांगनें का स्थान तो है नहीं…. ? वे स्वयं एक Engineer थे …. वे इस बात को नहीं समझ रहे होगें…. ? मैं English को बढ़ावा नहीं देना चाह रही हूँ , मौका ऐसा था , जिसमे हिंदी सभी को समझ में नहीं आता…. !!
शाम में मनोरंजन के लिए , सांस्कृतिक कार्यक्रम में नाचना – गाना – बजाना भी कन्नड़ में…. भोजन भी कन्नड़ स्वाद का था …

हम क्षेत्रीयेता से अपने को ऊपर उठा , क्यों नहीं अलग कुछ कर पाते हैं …. ? हम अच्छी तरह जानते है , अपने “ सैकड़ों साल के गुलामी “ का कारण …. !! अब ये नेता क्या चाहते है…. ? हम एक बार फिर से “ गुलाम “ हों जाएँ…. ?

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

2 thoughts on “संस्मरण : मोह क्षेत्रीयता का

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विभा जी , यह बात मुझे भी कभी समझ में नहीं आई कि हम भारती जब बात करते हैं तो हिन्दी बोलते बोलते अचानक इंग्लिश कियों बोलने लगते हैं ? जैसा कि विजय भाई ने बोला , ठीक बात यही है कि अपनी मात्री भाषा में बोला जाए और इस का तर्जुमा करने वाला भी साथ हो . हम अंग्रेजी बोल कर यह साबत करने की कोशिश करते हैं कि हम पड़े लिखे हैं . इस से मुझे पैरस की एक बात याद आ गई . वोह लोग अपनी ज़ुबान फ्रैंच पर इतने पक्के हैं कि वोह इंग्लिश जानते भी हैं लेकिन बोलना पसंद नहीं करेंगे . हम इंग्लिश में बात करते थे तो वोह फ्रैंच बोलते थे . एक इंडियन ने हमें बताया कि यह लोग इंग्लिश को नफरत करते हैं . यहाँ उनको जरुरत हो वहां वोह बोलेंगे वर्ना हिच्क्चाएंगे . हम भारतीओं को अपनी ज़ुबान से कोई पियार है ही नहीं . हम टैली पर कई मिनिस्टर को बोलते देखते हैं . बोलते बोलते i mean to say कह कर फिर हिंदी में बोलना शुरू कर देते हैं . हमारे बच्चे देख कर हँसते हैं . मुझे एक प्रोफैसर हरीश मल्होत्रा की याद आ गई जो बहुत पड़े लिखे हैं और युनिवर्सटी में पडाते हैं लेकिन जब अपने लोगों से बात करते हैं तो शुद्ध पंजाबी में बात करते हैं . अक्सर वोह रेडिओ पर बोला करते हैं और कहते हैं , ठीक हमें इंग्लिश आती है लेकिन इस का यह मतलब नहीं कि हम अपनी मातर भाषा को भूल् जाएँ .

  • विजय कुमार सिंघल

    विभा जी, आपको चाहे जैसा लगा हो, लेकिन मेरे विचार से नेताजी का कन्नड़ में बोलना बिलकुल ठीक था. परन्तु उनको उसका इंग्लिश में तत्काल अनुवाद करने की व्यवस्था भी करनी चाहिए थी.

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