हास्य व्यंग्य

जवानी जिंदाबाद

मै अब थोड़ा-थोड़ा बूढ़ा होने लगा हूँ। ठीक वैसे ही जैसे पच्चीस वर्ष पहले थोड़ा-थोड़ा जवान होने लगा था। आपके माँ-बापों की तरह मेरे माँ-बाप की चिंता थोड़ी-सी बंडे गाड़ने वाली है? मेरे शैशव से ही उन्हें चरित्र संदिग्ध नज़र आता था। मुझे आज भी अच्छी तरह याद है, उस दिन जब यौवन ने मेरे शरीर रूपी भवन की पहली सीढ़ी पर अपने चरण धरे थे तब एक अजीब टाइप की फीलिंग हुई थी। कुछ यूं लगने लगा था जैसे अंधेरे मन-मंदिर के लाखों पावर-सेवर बल्ब एक साथ रोशन हो उठे हों और अंदर की सारी घंटियाँ एक साथ घनघना उठीं हो। अब ये बात और है कि उसी दिन से मेरा पावर सेव होने के बदले ‘डिसचार्ज’ होने लगा था। अपनी उस अल्हड़ जवानी को सँवारने और ठीक-ठाक आकार देने के लिए हम भी प्रतिदिन सुबह अखाड़े में दंड पेलने का अभ्यास करते थे। चेहरे की अलग-अलग भाव-भंगिमा लाकर हम आईने मे अपनी मरियल-सी काया के खाली के स्थानोे को भरने की कोशिश ठीक उसी प्रकार करते थे जैसे शहर की गडढेदार सड़कों को पूरा न सुधार कर महानगर पालिका, उन गड्ढों को और बड़ा कर देते थे, ताकि उनमें लोग फंस जायें। पर उनमें तो सामनेवाली मछली भी न फँसी। वरना वे अगले दिन से पचास-पचास दंड और बढ़ा देते थे। पर मित्रों! भगवान ने हमे इतना सुन्दर शरीर दिया था कि हमारी स्थिति नारदमोह के नारद-सी ही बनी रही। किसी भी सुंदरी को हमारे शरीर की मछली न भाई। गये तो हम सलमान खान बनने पर अंततः अदनान सामी की दशा को प्राप्त हो गए।

साहब! ये जवानी भी बड़ी अनोखी बला है, जो आती भी है और जाती भी है। चढ़ती भी है और उतरती है। आपको बता दूं कि न्यूटन के पैदा होने पहले ही मेरे दादाजी के दादाजी के दादाजी, ये गुरुत्वाकर्षण का तीसरा नियम शोध गए थे। पहला और दूसरा नियम, न्यूटन ने बाद में प्रतिपादित किया था। तो मेरे दादाजी ने जो सूत्र इस तीसरे नियम को प्रमाणित करने के दिया था वह यह था-
‘जो चीज ऊपर को फेंको वह नीचे आती है,
इसलिए चढ़ती जवानी बुढ़ापे में ढल जाती है।’

बाद में यह बात न्यूटन ने सेव द्वारा प्रमाणित की। ये उसकी वैज्ञानिक प्रतिभा का नहीं बल्कि नकल मारने की प्रतिभा का प्रमाण है, वरना वह शाश्वत खोज मेरे खानदान की देन है इस नश्वर संसार को।

मेरे पिता बताते थे कि उनके जमाने में जब उन पर जवानी ने आक्रमण किया तो उन्होंने गांधीजी जैसे झोंक दिया था। मैंने कहा कि जवानी में अपने-अपने युग में अपने-अपने झाड़ के नीचे किसी हसीना के साथ मिले, दिनभर में चार-छः बार कपड़े बदले और उसके पास से सिगरेट की बू आए तो घबराइए नहीं-खुश होइए यह सोचकर कि जवानी एक बार फिर आपके आँगन में रंगोली डाल रही है।

जवानी के साथ बड़ी मुश्किल है। वह आदमी के साथ रहना नहीं चाहती और आदमी है कि उसका साथ छोड़ना नहीं चाहता। जाती जवानी और आते बुढ़ापे मे ये जद्दोजहद जीवन की अंतिम सांस चलती रहती है। आजकल बुढ़ापे में भी जवानी मेन्टेन करने के अनेक फार्मूलों से बाज़ार पटा है। बाल रंगवाने से लेकर खाल खिंचवाने तक के सारे यंत्र उपलब्ध हैं बस आपकी औकात होनी चाहिए। आप कितनी देर के लिए जवान होना चाहते हैं? गोली खाइए और किस्मत आजमाइए। सफल हो गए तो जवाँ मर्द कहलाओगे, नहीं, तो बुढ़ापा सिर चढ़कर बोलेगा। बेचारे महाराज ययाति! इस मामले में बड़े अनलकी रहे। गलत समय जो पैदा हो गए। इस कलयुग में पैदा होते तो न बुढ़ापा बर्बाद होता और न उनके बेटे की जवानी मुझे तो उन लोगों की बुद्धि पर तरस आता है जो कलियुग को कोसते हैं। न जाने कितने ययाति समय से पहले बूढ़े होने से जो बच गये! खैर! जो हुआ सो हुआ। बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि ले।

तो मैं बता रहा था कि मैं अब थोड़ा-थोड़ा बूढ़ा होने लगा हूँ। मेरे बाल पक गए हैं, जिनका चेहरा काला कर मैं अपने को जवान रखने की कोशिश करता हूँ। पर ये बड़े जिद्दी हैं और झरोखे में से झाँक-झँाककर अपना गोरा चेहरा बदन दिखाते हैं और मुझे चिढ़ाते हैं। मैं उनकी यह बदतमीजी, हँसते-हँसते सह लेता हूँ। आप ही बताइए मैं इसके अलावा क्या कर सकता हूँ? गुस्से के मारे मन तो करता है कि उन्हें उखाड़ डालूँ, पर खून के घूँट पी कर रह जाता हूँ। उस समय अपने आप में पूरा महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश महसूस करने लगता हूँ। बल्कि मैं कई बार तो उनके प्रति कृतज्ञ हो जाता हूँ कि अब तक मेरी खोपड़ी पर जमे हुए हैं। वरना इस ज़माने, जहाँ ठाकरे, ठाकरे का नहीं हुआ, बीजेपी जसवंतसिंह की न हुई तो फिर इन बेवफा जुल्फों से क्या उम्मीद क्या करना! पर देखिए न ये सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नकारते हुए डटे हुए हैं-उखाड़ लो जिसे जो उखाड़ना है! और फिर अपनी उम्र के उन मित्रों को देखता हूँ तो अलौकिक सुख मिलता है जो कभी अमिताभ और जीतेन्द्र हुआ करते थे, लेकिन आज ए.के. हंगल और अनुपम खेर बने घूम रहे हैं।

वैसे एक बात तो है कि आदमी को जवान रखने में बालो की बड़ी अहं भूमिका है। जिस बूढ़े के सिर पर सारे बाल मौजूद हो वह कम-से-कम अपने प्रतिद्वंद्वी को ललकार यह तो कह सकता है-‘है दम तो मेरा बाल टेढ़ा कर के दिखा।’ एक बात बताऊँ, यह चुनौती तो मैंने कई बार उनके मुँह से भी सुनी है जो पूर्णतः गंजत्व को प्राप्त हो चुके हैं पर न जाने वे किस बाल को टेेढ़ा करने की चुनौती देते हैं। यदि आपको पता हो तो मुझे भी बताने की कृपा करना।

3 thoughts on “जवानी जिंदाबाद

  • उपासना सियाग

    :)))))

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    एक तीर कई निशाने ….. अच्छी अभिव्यक्ति

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा व्यंग्य. जवानी का आपने बढ़िया चित्र खींचा है.

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