लघुकथा

बड़े बाप की बेटी

बड़े बाप की बेटी से अपने बेटे का रिश्ता पक्का करते हुए,रामलाल जी ने सोचा भी नहीं था कि ये दिन भी देखना पड़ेगा| रीना के पापा उ.प्र. के मथुरा में जिला कलेक्टर के पद पर कार्यरत थे| बहु हमेशा हर छोटी मोटी बात पर अपने पिता के ऊँचे ओहदे का रोब दिखाती थी | रामलाल जी आगरा में सरकारी महकमे में अफसर थे| इसके अलावा बाप-दादा की पुस्तैनी जमीन-जायदाद के मालिक भी थे| कमलेश उनका इकलौता बेटा था| शादी के कुछ ही दिनों बाद बहु के रंग- ढंग से पता चल गया था कि बुढ़ापा मुश्किल के साथ ही कटेगा| तब तक तो सब ठीक- ठाक ही चल रहा था,जब तक रामलाल जी की पत्नी घर का सब काम काज किया करती थी| पिछले सात सालो से वो लकवा से पीड़ित थी;रामलाल जी खुद ही घर का और पत्नी का ख्याल रखते थे| पत्नी भी दो साल हुए इस दुनिया से चली गयी| अब तो बहु ने और भी बुरा हाल कर दिया उनका| बेटा भी मूकदर्शक बना हुआ है रीना उसकी एक नहीं चलने देती| अब बहु कह रही है कि आप घर के ऊपर वाले हिस्से में जाकर रहो और अपने खाने-पीने का इंतजाम अलग करलो| मुझसे आपके खाने पीने का काम नहीं होता है| बेचारे रामलाल जी अपने ही पैसो से बनाये हुए घर में सुख चैन से नहीं रह सकते है| आखिर उन्होंने निर्णय लिया अपने लिए अलग व्यवस्था की बहु-बेटे के होते हुए एकाकी जीवन जीने को मजबूर रामलाल जी अपनी किस्मत को कोसते हुए अपना बाकी का जीवन काट रहे है|

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

One thought on “बड़े बाप की बेटी

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी लघु कथा. इस तरह की घटनाएँ आज के समाज में आम हैं.

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