सामाजिक

लक्ष्य का होना ज़रूरी क्यों है?

१) सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए: जब आप सुबह घर से निकलते हैं तो आपको पता होता है कि आपको कहाँ जाना है और आप वहां पहुँचते हैं , सोचिये अगर आपको यह नहीं पता हो कि आप को कहाँ जाना है तो भला आप क्या करेंगे? इधर उधर भटकने में ही समय व्यर्थ हो जायेगा. इसी तरह इस जीवन में भी यदि आपने अपने लिए लक्ष्य नहीं बनाये हैं तो आपकी ज़िन्दगी तो चलती रहेगी पर जब आप बाद में पीछे मुड़ कर देखेंगे तो शायद आपको पछतावा हो कि आपने कुछ खास उपलब्ध नहीं किया!! लक्ष्य व्यक्ति को एक सही दिशा देता है. उसे बताता है कि कौन सा काम उसके लिए जरूरी है और कौन सा नहीं. यदि लक्ष्य स्पष्ट हों तो हम उसके अनुसार अपने आप को तैयार करते हैं. हमारा अतीन्द्रिय मन हमें उसी के अनुसार कार्य करने के लिए प्रेरित करता है. दिमाग में लक्ष्य साफ़ हो तो उसे पाने के रास्ते भी साफ़ नज़र आने लगते हैं और इंसान उसी दिशा में अपने कदम बढा देता है.

२) अपनी ऊर्जा का सही उपयोग करने के लिए: भगवान ने इन्सान को सीमित उर्जा और सीमित समय दिया है. इसलिए ज़रूरी हो जाता है कि हम इसका उपयोग सही तरीके से करें. लक्ष्य हमें ठीक यही करने को प्रेरित करता है. अगर आप अपने अंतिम-लक्ष्य को ध्यान में रख कर कोई काम करते हैं तो उसमे आपकी एकाग्रता (concentration) और ऊर्जा (energy) का स्तर कहीं अच्छा होता है. उदाहरण के लिए, जब आप किसी पुस्तकालय में बिना किसी खास किताब को पढने के मकसद से जाते हैं तो आप यूँ ही कुछ किताबों को उठाते हैं और उनके पन्ने पलटते हैं और कुछ एक पन्ने पढ़ डालते हैं, पर वहीँ अगर आप किसी प्रोजेक्ट रिपोर्ट (Project Report) को पूरा करने के उद्देश्य से जाते हैं तो आप उसके मतलब की ही किताबें चुनते हैं और अपना काम पूरा करते हैं. दोनों ही मामलों में आप समय उतना ही देते हैं पर आपकी दक्षता (efficiency) में जमीन-आसमान का फर्क होता है. इसी तरह जीवन में भी अगर हमारे सामने कोई निश्चित लक्ष्य नहीं है तो हम यूँ ही अपनी ऊर्जा व्यर्थ नष्ट करते रहेंगे और नतीजा कुछ खास नहीं निकलेगा. लेकिन इसके विपरीत जब हम लक्ष्य को ध्यान में रखेंगे तो हमारी ऊर्जा का सही जगह उपयोग होगा और हमें सही परिणाम देखने को मिलेंगे.

३) सफल होने के लिए: जिससे पूछिए वही कहता है कि मैं एक सफल व्यक्ति बनना चाहता हूँ..पर अगर ये पूछिए कि क्या हो जाने पर वह खुद को सफल व्यक्ति मानेगा तो इसका उत्तर कम ही लोग पूर विश्वास से दे पाएंगे. सबके लिए सफलता के मायने अलग-अलग होते हैं. और यह मायने लक्ष्य द्वारा ही निर्धारित होते हैं. तो यदि आपका कोई लक्ष्य नहीं है तो आप एक बार को औरों की नज़र में सफल हो सकते हैं पर खुद की नज़र में आप कैसे निश्चिय करेंगे कि आप सफल हैं या नहीं? इसके लिए आपको अपने द्वारा ही तय किये हुए लक्ष्य को देखना होगा.

४) अपने मन के विरोधाभास को दूर करने के लिए: हमारी जिंदगी में कई अवसर (opportunities) आते-जाते रहते हैं. कोई चाह कर भी सभी अवसरों का फायदा नहीं उठा सकता. हमें अवसरों को कभी हाँ, तो कभी ना करना होता है. ऐसे में ऐसी परिस्थितियां आना स्वाभाविक है, जब हम निश्चय नहीं कर पाते कि हमें क्या करना चाहिए. ऐसी स्थिति में आपका लक्ष्य आपको गाइड कर सकता है अर्थात् मार्ग दिखा सकता है. जैसे मेरा और मेरी पत्नी का लक्ष्य एक ब्यूटी पार्लर खोलने का है, ऐसे में अगर आज उसे एक ही साथ नौकरी के दो प्रस्ताव मिलें, जिसमें से एक किसी पार्लर से हो तो वह बिना किसी भ्रम (confusion) के उसे स्वीकार कर लेगी , भले ही वहां उसे दुसरे प्रस्ताव की तुलना में कम वेतन मिले. वहीँ अगर सामने कोई लक्ष्य ना हो तो हम तमाम कारकों (factors) पर विचार करते ही रह जायें और अंत में शायद ज्यादा वेतन ही निर्णायक तत्व (deciding factor) बन जाये.

दोस्तों अर्नोल्ड एच ग्लासगो का कथन “फुटबाल की तरह ज़िन्दगी में भी आप तब-तक आगे नहीं बढ़ सकते जब तक आपको अपने लक्ष्य का पता ना हो.” मुझे बिलकुल उपयुक्त लगता है. तो यदि आपने अभी तक अपने लिए कोई लक्ष्य निर्धारित किया है तो इस दिशा में सोचना शुरू कीजिये.

One thought on “लक्ष्य का होना ज़रूरी क्यों है?

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा और प्रेरक लेख.

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