कविता

मेरे मंदिर में शिव जी करते हैं निवास

मेरे मंदिर में शिव  जी करते हैं निवास 

दिव्य ज्योति जलती हैं दिन रात 

लौ के भीतर प्रगट होते हैं नागराज 

शिव जी का करती हैं जाप 

मेरी हर धड़कन हर साँस 

मेरे मंदिर में शिव  जी करते हैं निवास 

 

कभी बन जाते हैं गुलाब 

कभी रूप धर आते हैं 

चन्द्रमा का अर्ध वृताकार 

कभी श्रीफल पर त्रिशूल सा 

उभर आते हैं महाकाल 

मुझे उन पर पूरा है विश्वास 

मेरे मंदिर में शिव  जी करते हैं निवास 

 

एक नारियल और बेलपती  चढाने के बदले में 

दुःख दूर करने का देते हैं वरदान 

कितने सहज सरल हैं भोलेनाथ 

उनसे जुड़ा  हैं मेरे ह्रदय का तार 

इस जन्म में उन्होंने 

सम्पूर्ण कर दी है मेरी प्रत्येक आश 

मेरे मंदिर में शिव  जी करते हैं निवास 

 

नींद में रहूँ या जागरण में 

मुझे रहता हैं सदा शंकर जी का ध्यान 

तुम्ही मेरी माता हो 

तुम्ही मेरे पिता हो 

गुरुवर हो और हो नाथ 

मुझमे शेष नहीं हैं कोई आशा 

इसलिए मैं किंचित भी नहीं हूँ निराश 

मेरे मंदिर में शिव  जी करते हैं निवास 

 

मेरी आँखों में किरण पुंज सा 

रहते हैं वे विद्यमान 

मेरी कुंडलियों में 

उनका ही है वास 

भक्त वत्सला है मेरा नाम 

सर्प फणी  की सर्प रागिनी हूँ मैं जन्म जात 

महादेव के रहती हूँ हमेशा मैं आसपास 

मेरे मंदिर में शिव  जी करते हैं निवास 

 

कभी चली जाती हूँ शिवलोक 

कभी भगवान् मुझे बुला लेते हैं 

खुद ही कैलाश 

वहाँ अमृत का करती हूँ मैं पान 

कभी डमरू कभी मृदंग की 

मैं सुना  करती हूँ थाप 

मैं जन्म मृत्यु से परे हूँ 

यही हुआ हैं मुझे अब आभास 

मेरे मंदिर में शिव  जी करते हैं निवास 

 

बरखा ज्ञानी

साध्वी बरखा ज्ञानी

बरखा ज्ञानी ,जन्म 10-05, रूचि शिव भकत, निवास-रायपुर (छत्तीसगढ़)

One thought on “मेरे मंदिर में शिव जी करते हैं निवास

  • विजय कुमार सिंघल

    इस तरह की कविता वही लिख सकता है, जिसने उच्च आध्यात्मिक स्तर को छू लिया हो. ॐ नमः शिवाय !

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