लेखसामाजिक

सुपरसितारों की छवि और सामान्य जनमानस…

वास्तव में आपकी जो छवि मीडिया पेश करती है, लोगों की नजरों में आप वैसे ही बन जाते हैं! अधिकतर सुपरसितारों की हमारे देश में यही दशा रही है कि उनकी जो छवि सामाजिक जीवन में रही है, असल में वो आगे चलकर खोखली ही निकली है, शाहरुख़ खान हो या अमिताभ बच्चन इनकी कोई ना कोई ऐसी एक बात है जिसे छुपाकर हमारी आँखों के सामने इन मायानगरी वालों की माया ही प्रदर्शित की जाती रही है, सामाजिक जीवन का दावा करने वाला एक और सुपरसितारा इन दिनों कईयों की आँखों का तारा बना हुआ है, जी हाँ ‘आमिर खान’ सत्यमेव जयते की एंकरिंग करते करते जनाब सामाजिक कार्यकर्ता तो बने लेकिन असल में सामजिक जागृति लाने निकले इस सख्श ने कभी अपने ही गाँव की दशा सुधारने की जरूरत नहीं समझी, “अख्तियारपुर” उत्तरप्रदेश के हरदोई जिले से ४० किलोमीटर दूर शाहबाद कस्बे में बसा है, ये आमिर खान का पैतृक गाँव है, यहाँ की जर्जर हालत का दौरा जब दैनिक भास्कर के एक पत्रकार शाह आलम ने किया तो बड़ी दुखद सच्चाई ये सामने आयी कि ना इस गाँव में बिजली ही है और ना स्कूल, यहाँ के लोग सालों से उम्मीद लगाये बैठे हैं कि कभी आमिर आयेंगे और यहाँ के मसलों को हल करेंगे, इससे एक बात दिमाग में आती है कि आमिर का सामाजिक होना ढोंग है क्यूंकि ये खबर इसी ओर मानवीय मानसिकता को मोडती है!
मेरी भावना किसी भी आमिर प्रशंसक को ठेस पहुंचाने की  कतई नहीं है, लेकिन समाज को सुधारने निकले, टीवी पर बैठकर जनता के सवालों का जवाब देने, सामाजिक बुराइयों की घटनाओं को सुनकर आंसू बहाने निकले एक सामाजिक जीव को अपने गाँव की सुध तो लेनी ही चाहिए थी, जब इस तरह की खबरें सामने आती हैं तो ऐसा लगता है कि उन सवालों के जवाब झूठे हैं जो आमिर जनता को देते हैं, ये सब एक पब्लिक रिस्पोंस के लिए किया जा रहा है, वो आंसू झूठे लगते हैं जो आमिर गद्देदार सोफे में बैठकर बहाते हैं, ये कैसा सामजिक जीव है, जब इनकी ही पोल पट्टी खुलकर सामने आती है तो बुरा लगता है, किसी भी क्षेत्र का व्यक्ति हो उसे शुरुआत स्वयं से करनी चाहिए ताकि हम जैसे आलोचना करने के लिए बैठे बेशर्म प्राणियों के लिए इनकी साख पर उठाने के लिए कोई सवाल ही ना रहे…
वडनगर एक गाँव है गुजरात का, यहाँ के सरकारी स्कूल में जाकर देखिये बच्चे टीवी से ज्ञान ले रहे हैं, कंप्यूटर चलाना सीख रहे हैं, यहाँ तक इस गाँव में wi-fi टावर हैं लोग इन्टरनेट का उपयोग कर रहे हैं, और ये गाँव है गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का विधानसभा क्षेत्र! यहाँ पूर्व मुख्यमंत्री कहना इसीलिए ठीक लगता है क्यूंकि एक विधायक के रूप में मोदी ने इस गाव को आदर्श गाँव बनाकर पेश किया, आज कोई आदर्श ग्राम के लिए मोदी जी से मॉडल पूछे तो उनके पास झट से वडनगर है दिखाने के लिए, इस तरह उनकी साख पर सवाल उठाना भी कठिन है, क्यूंकि जड वहां मजबूत है!

ठीक इसी तरह आमिर के मामले में जब ऐसा मामला उजागर होता है तब जडें हिलना लाजिमी सी बात है, लोग कहते ही हैं कि जो अपने गाँव को नही उबार पाया वो क्या खाक दूसरी जगह सामाजिक क्रांति लाएगा…आमिर खान देश की बहुत बड़ी शक्सियत हैं इसमें कोई दो राय नहीं और वे अपने गाँव के लिए कम से कम बेहतर कदम उठा ही सकते हैं इसका भी पूरा भरोसा है…ये उन्हें आइना दिखाने के लिए काफी है!
संकीर्णता इसमें नहीं है कि मैं आमिर पर ये आरोप लगा रहा हूँ बस बात इतनी सी है कि इससे एक गलत छवि सुपरसितारों की हमारे सामने आती है, लगता है कि टीवी के सामने ये सब करने वाला जरुर ढोंग ही कर रहा है…खैर जो भी है सत्यमेव जयते के नाम पर कुछ थोड़े जो भी सामाजिक कार्य हुए हैं या हो रहे हैं सराहनीय हैं, लोगों में जो थोड़ी जागृति आई है वो भी ठीक है, लेकिन इस तरह की ख़बरों से एक जागरूक करने वाले इंसान की गलत छवि ही समाज के सामने जाती है और फिर सामान्य मानस पटल पर इसका गलत असर होता है!Photo0037 Photo0038

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

4 thoughts on “सुपरसितारों की छवि और सामान्य जनमानस…

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अगर यह सचाई है तो बुरी बात है . यह मुद्दा आप को उठाना चाहिए और अमीर खान के सत्यमेव जयते में भाग लेकर उन से प्रशन पूछने चाहिए .

  • विजय कुमार सिंघल

    चिराग तले अँधेरा इसी को कहा जाता है. अच्छा लेख.

  • उपासना सियाग

    जी हाँ !! हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और ..!बहुत सार्थक लेख

Comments are closed.