कविता

चिंगारी

 

प्यार की राह के अंतिम छोर तक हम आ गये हैं
पर्वत की चोटियों सा आकाश तक हम आ गये हैं

तन से मन ,मन से रूह तक का यह सफ़र अच्छा रहा
हमारे साथ रहने कहीं कोहरा कही शबनम आ गये हैं

राख के ढेर में छुपी रहती है इश्क की जलती चिंगारी
उन्हें फिर से सुलगाने बहारों के कई मौसम आ गये हैं

हर अहसास को मिल जाता है उसका आशिक
रूठे प्रेमी को मनाने देखो उनके सनम आ गये हैं

बिना परीक्षा दिए होता नही कुछ भी हासिल
प्रेम पर ज़ुल्म ढाने देखो सितम आ गये हैं

किशोर कुमार खोरेंद्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

2 thoughts on “चिंगारी

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अच्छी कविता .

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