कविता

तुमसे दूर जाकर

तुम साथ होते हो ,
तो समय जैसे पंख लगाकर,
उड़ जाता है !
लगता है कुछ लम्हें ,
और चुरालूँ, या यहीं पर रोक लूँ ,
इस वक्त को !
पर जब तुमसे, दूर जाती हूँ,
लगता है,हर लम्हा अपना हिसाब,
खुद ही बयाँन, कर रहा है !
अजीब सा, सिलसिला है,
ये जिंदगी का,कभी वक्त नहीं,
कभी बेहिसाब वक्त !
तुम से दूर होते ही ,
तनहाई, शूल सी ,
चुभने लगती है मुझे!
वक्त के हाथ भी ,
बड़े बेरहम, लगते है मुझे !
काश कि तुम, हर पल ,
मेरे पास ही रहो !
तुम्हारी दूरी अब,
बरदाशत नहीं, होती है मुझसे !
बडी अजीब सी कशिश है,
तुम्हारी आँखों में,
जिससे रूह तक,
सिहर उठती हूँ में!
तुम्हारी चाहत ही, मेरा जुनून है,
ओर मेरे जीने का, मकसद भी!
कितनी भी, कोशिश करलूँ,
नाराज होने की तुमसे!
उतना ही प्यार,
तुम पर आ जाता है !
खुद से ही झगडती हूँ में,
सोचा था,इस बार ,
खूब सताऊँगी तुम्हें !
पर सजा में, भुगत रही हूँ,
मुझे खुद, नहीं पता
क्यूँ तुमसे, इतना प्यार ,
करती हूँ में !
तुम साथ होते हो ,
तो समय जैसे पंख लगाकर,
उड़ जाता है !
…राधा श्रोत्रिय”आशा

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"

One thought on “तुमसे दूर जाकर

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    राधा जी , कविता बहुत अच्छी लगी .

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