कविता

गीत : बिलखती ममता…

बेसुध है, बदहाल हो गयी।
मानो माँ कंगाल हो गयी,
दहशतगर्दों की हठधर्मी,
खून से धरती लाल हो गयी।

निर्मम अत्याचार हुआ है।
जमकर नरसंहार हुआ है।
माँ की ममता बिलख रही है,
बच्चों पर प्रहार हुआ है।
चारों तरफ़ गूँज रही है,
दहशतगर्दों की हठधर्मी,
मौला भी खामोश देखता,
मानो वो लाचार हुआ है।

बारूदों की लपट में झुलसी,
काली उनकी खाल हो गयी।
दहशतगर्दों की हठधर्मी,
खून से धरती लाल हो गयी…

दहशतगर्द भला क्या जानें,
माँ की ममता क्या होती है।
वो जिससे जन्मे धरती पर,
वो भी तो एक माँ होती है।
लेकिन वो क्या जानें माँ को,
जो मानव का खूं पीते हैं,
“देव” भला ये नरपिशाच कब,
मानवता के संग जीते हैं।

फटी किताबें, उधड़े बस्ते,
मौन सभी की चाल हो गयी।
दहशतगर्दों की हठधर्मी,
खून से धरती लाल हो गयी। ”

…….चेतन रामकिशन “देव”

3 thoughts on “गीत : बिलखती ममता…

  • मीनाक्षी सुकुमारन

    मार्मिक

  • विजय कुमार सिंघल

    शानदार गीत !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    पशु लोग हैं जो यह हिंसक काम करते हैं .

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