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“शुद्धि” प्राचीन आर्य विधान है

“घर वापसी”, शुद्धि, परावर्तन अनेक नामों से हम लोग एक प्राचीन संस्कार से आज परिचित है। प्राचीन काल में अनार्यों को आर्य बनाने की प्रक्रिया को शुद्धि कहा जाता था। इस प्रक्रिया में आत्मचरित को पवित्र करना शुद्ध कहलाता था। आज विधर्मी जैसे मुस्लिम अथवा ईसाई हो चूके हमारे भाइयों को पुन: वैदिक सनातन धर्म में प्रविष्ट करने को “शुद्ध” करना कहा जाता है। 28 दिसंबर 2014 के Midday अख़बार में मुंबई के रहने वाले संस्कृत विद्वान श्री गुलाम दस्तगीर जी का बयान छपा कि हिन्दू धर्मग्रंथों में शुद्धि का विधान नहीं है। हम इस लेख के माध्यम से गुलाम साहिब जी की इस भ्रान्ति का निवारण करना चाहते हैं की शुद्धि का विधान न केवल प्राचीन हैं अपितु इसका वैदिक ग्रंथों में अनेक स्थलों पर वर्णन मिलता हैं जिससे न केवल उनकी भ्रान्ति दूर हो सके अपितु उनके निकष्ट सज्जन भी इस भ्रान्ति का शिकार न हो।
वेदों में “शुद्धि” का सन्देश  
1. हे विद्वानों! जो गिरे हुए है उनको फिर से उठाओ। जिन्होंने पाप किया है अथवा जिनका जीवन मैला हो गया है उनको फिर से जीवन दो या “शुद्ध” करो।ऋग्वेद 10/137/1
2. हे इन्द्र! शत्रुओं के निवारणार्थ हमें शक्ति दीजिये जो हिंसारहित एवं कल्याणकारक है। जिससे तुम दासों (अनार्यों) को आर्य अर्थात श्रेष्ठ बनाते हो, जो मनुष्य की वृद्धि का हेतु है।ऋग्वेद 6/22/10
3. परमेश्वर के नाम को आगे बढ़ाते हुए सब संसार को आर्य अर्थात श्रेष्ठ बनाओ। ऋग्वेद 9/63/5
श्रोत्र-सूत्र ग्रंथों में शुद्धि का विधान
1. भ्रष्ट द्विजों की संतान को शुद्ध कर यज्ञोपवीत दे देना चाहिये। आपस्तम्भ 1/1/1
2. प्रायश्चित से प्रायश्चित्कर्ता शुद्ध होकर अपने असली वर्ण को प्राप्त करता है। आपस्तम्भ 1/1/2
3. उपद्रव, व्याधि, मुसीबत आदि में शरीर की रक्षार्थ जो विधर्मी बने वह शांति होने पर शुद्ध होने के लिए प्रायश्चित कर ले। पराशर स्मृति 7/41
4. देश में उपद्रव आदि के काल में जिनका यज्ञोपवीत उतारा गया वह मास भर दुग्ध पान का व्रत करे, गोपालन करे और पुन: यज्ञोपवीत धारण करे। हारीत स्मृति
5. जिनको मलेच्छों ने बलपूर्वक गोहत्या, मांसभक्षण आदि नीचकर्म किये हो वह वर्णानुसार कृच्छ व्रत कर शुद्ध हो जाये। देवल स्मृति श्लोक 9-11
6. गोवध आदि समतुल्य पातकियों की शुद्धि चान्द्रायण आदि व्रतों से होती हैं। याज्ञवल्क्य स्मृति प्र -5
भविष्य पुराण में शुद्धि का वर्णन 
 1.कण्व ऋषि द्वारा मलेच्छों की शुद्धि का वर्णन। भविष्य पुराण प्रतिसर्ग खंड 4 अध्याय 21 श्लोक 17-21
2. अग्निवंश के राजाओं द्वारा बौद्धों की शुद्धि का वर्णन। भविष्य पुराण प्रतिसर्ग खंड 4 अध्याय 21 श्लोक 31-35
3. कृष्ण चैतन्य के सेवक,रामानंद के शिष्य, निम्बादित्य, विष्णु स्वामी द्वारा मलेच्छों की शुद्धि का वर्णन। भविष्य पुराण प्रतिसर्ग खंड 4 अध्याय 21 श्लोक 48-59
इतिहास में शुद्धि के प्रमाण 
1. कश्मीर के राजा द्वारा ब्राह्मणों के सहयोग से लिखवाया गया ग्रन्थ रणबीर सागर में शुद्धि का समर्थन इन शब्दों में किया गया है की सभी ब्राह्य जातियाँ प्रायश्चित कर शुद्ध हो सकती है। रणबीर सागर प्रायश्चित प्रा 12
2. इतिहास में शंकराचार्य एवं कुमारिलभट्ट द्वारा बुद्धों की शुद्धि।
3. इतिहास में हुण, काम्बोज आदि जातियाँ शुद्ध होकर आर्य हुई।
4. शिवाजी द्वारा नेताजी पालकर जैसे सरदारों को इस्लाम से वैदिक धर्म में दोबारा से शुद्ध कर लिया गया।
इस प्रकार के अनेक उदहारण प्राचीन ग्रंथों एवं इतिहास से दिए जा सकते है  जिससे यह सिद्ध होता है कि प्राचीनकाल में शुद्धि का विधान हमारे देश में प्रचलित था। आधुनिक भारत में शुद्धि के प्राचीन संस्कार को पुनर्जीवित करने का और खोये हुए भाइयों को वापिस से स्वधर्मी बनाने का सबसे प्रथम एवं क्रांतिकारी प्रयास स्वामी दयानंद द्वारा किया गया जिसके लिए समस्त हिन्दू समाज का उनका आभारी होना चाहिए।
डॉ विवेक आर्य

2 thoughts on ““शुद्धि” प्राचीन आर्य विधान है

  • Man Mohan Kumar Arya

    लेख के लिए विद्वान लेखक को बधाई। शुद्धि का एक अर्थ गुणवर्धन है। एक व्यक्ति में जिन गुणों की कमी है उन्हें उसमे उत्पन्न करना और उसके दुर्गुणों को दूर करना। विज्ञानं द्वारा भी अशुद्ध पदार्थों को शुद्ध किया जाता है। अशुद्ध जल को वैज्ञानिक विधि से शुद्ध कर उसे उपयोगी बनाया जाता है। यह जल की एक प्रकार से शुद्धि ही है। वैदिक मान्यताएं सर्व श्रेष्ठ है। अतः सभी मत मतान्तरों के बन्धुवों को वेद की सत्य वा ज्ञानयुक्त हितकारी शिक्षाओं का प्रचार कर उनके अवगुणो को दूर करना और उन्हें वेदानुसार जीवन व्यतीत करने के लिए सहमत करना भी एक प्रकार की शुद्धि है जिससे वह जीवन के लक्ष्य “मोक्ष” को जान कर उसे प्राप्त करने का प्रयास कर सकें। हम पहले पौराणिक थे। स्वाध्याय एवं विद्वानों के प्रवचन सुन कर हमने असत्य को त्याग दिया और सत्य को ग्रहण किया, यह एक प्रकार से हमारी शुद्धि हो गई. वस्तुतः सत्य को ग्रहण करना और असत्य को त्यागना ही शुद्धि का मुख्य आधार है। “सत्यम वद धर्म चर, लफ भी जीवन को शुद्ध करने का आदेश वा निर्देश है। वेद आद्यांत शुद्धि का समर्थन कर रहें हैं. लेखक महोदय की लेख में सत्य भी है और तथ्य वा प्रमाण भी।

  • विजय कुमार सिंघल

    इस लेख से स्पष्ट है कि यह घर वापसी का कार्य विहिप द्वारा छेड़ा गया कोई शिगूफा नहीं है, बल्कि इसका विधान वेदों तक में उपलब्ध है. बहुत अच्छा लेख.

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