कविता

पराया धन

कह कर सब ने

पराई सदा ही दिल

दुखाया मेरा ……

जब कहा सब ने

है पराया धन

फिर भी बेटी से  बहन

का हर फ़र्ज़ निभाया मैने

यूँ बड़े होते होते भी समझ

न पाई क्यों हो कर भी अपनी

पराई ही कहलाई …….

ब्याह कर जब आई

यहाँ भी सब ने कहा सदा है

पराये घर से आई

फिर भी बीवी , बहू

हर रिश्ते का फ़र्ज़ निभाया

रखा सदा ही मान – सम्मान

हर रिश्ते का

फिर भी कभी

कोई अपना  न हुआ

सब ने सदा ही किया पराया

है कैसी नियति हम बेटियों की

सदा पराई ही कहलाई

फिर भी हम ने हमेशा

प्यार ही बांटा सब को

प्यार से ही सजाया हर रिश्ता

ये और बात  है की दिल फिर भी

समझ न पाया क्यों सदा ही

पराई कहलाई गयी …………….

मीनाक्षी सुकुमारन

 

 

मीनाक्षी सुकुमारन

नाम : श्रीमती मीनाक्षी सुकुमारन जन्मतिथि : 18 सितंबर पता : डी 214 रेल नगर प्लाट न . 1 सेक्टर 50 नॉएडा ( यू.पी) शिक्षा : एम ए ( अंग्रेज़ी) & एम ए (हिन्दी) मेरे बारे में : मुझे कविता लिखना व् पुराने गीत ,ग़ज़ल सुनना बेहद पसंद है | विभिन्न अख़बारों में व् विशेष रूप से राष्टीय सहारा ,sunday मेल में निरंतर लेख, साक्षात्कार आदि समय समय पर प्रकशित होते रहे हैं और आकाशवाणी (युववाणी ) पर भी सक्रिय रूप से अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत करते रहे हैं | हाल ही में प्रकाशित काव्य संग्रहों .....”अपने - अपने सपने , “अपना – अपना आसमान “ “अपनी –अपनी धरती “ व् “ निर्झरिका “ में कवितायेँ प्रकाशित | अखण्ड भारत पत्रिका : रानी लक्ष्मीबाई विशेषांक में भी कविता प्रकाशित| कनाडा से प्रकाशित इ मेल पत्रिका में भी कवितायेँ प्रकाशित | हाल ही में भाषा सहोदरी द्वारा "साँझा काव्य संग्रह" में भी कवितायेँ प्रकाशित |

2 thoughts on “पराया धन

  • मीनाक्षी सुकुमारन

    तहे दिल से बेहद शुक्रिया विजय जी

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत मार्मिक कविता. बेटी को पराया धन कहना गलत है. उस पर माता पिता का भी उतना ही हक़ है, जितना ससुराल का.

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