उपन्यास अंश

उपन्यास : देवल देवी (कड़ी १२)

बालक तलवार लेने के लिए आगे बढ़ता है तभी कक्ष के द्वार पर आहट सुनकर दोनों द्वार की तरफ देखते हैं। वहाँ राजकुमारी देवलदेवी खड़ी है। हाथ में स्वर्ण थाली है, जिसमें द्वीप प्रज्ज्वलित हैं। अक्षत और वंदन रोली के साथ एक रेशमी धागा उस थाली में रखा है।

सेनापति इंद्रसेन ने सिर झुकाकर कहा ”आन्हिलवाड़ की राजकुमारी देवल देवी के चरणों में सेनापति इंद्रसेन प्रणाम करता है।“

”प्रणाम तो हमें आपको करना चाहिए सेनापति जी, जो आप मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए उद्योग कर रहे हैं। नहीं तो बाकी सभी अकर्मण्य हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं।“

”आप द्वार पर क्यों खड़ी हैं राजकुमारी जी, सेनापति के कक्ष में आपका स्वागत है। कदाचित राजकुमारी जी युद्ध की विभीषिका से परिचित हैं तभी इतनी रात्रि गए शयन कक्ष में होने के स्थान पर यहाँ उपस्थित हैं।“

”युद्ध की विभीषिका, क्या आपको ज्ञात नहीं सेनापति जी, किस तरह से कुछ वर्ष इसी सुल्तान की सेनाओं ने मालवा, भिलसा और देवगिरी में आतंक मचाया था।“

”उस समय कदाचित राजकुमारी जी का जन्म भी नहीं हुआ होगा। फिर भी उन घटनाओं की जानकारी। अद्भुत! आश्चर्यजनक! आपको इस अल्पायु में इस तरह राजनीति से परिचित देखकर अत्यंत भला लगा। पर आप अभी कुछ अर्कमण्य लोगों की बात कर रही थीं। आपका अभिप्राय किन से था?“

”सभी तो हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। जब चारों ओर रणभेरी का जयघोष गूँजना चाहिए तब नाटकशालाओं में लोग घुंघरू का संगीत सुन रहे हैं। जब रणवाद्य की धाप पर खड्ग का नृत्य का समय हो तब नृतकियों को लंबे अवकाश पर भेज देना चाहिए। जब मातृभूमि पुकारती हो तो प्रेयसियों के कक्ष को त्याग देना चाहिए। पर यहाँ जब शत्रु युद्ध की हुंकार भर रहा है उस समय भी युवराज अपनी प्रेयसी मालवा की राजकुमारी के कक्ष से कब बाहर निकले हैं किसी को पता नहीं। उप-सेनापति कंचन सिंह की अर्कण्यता किसी से भी छुपी नहीं है। उनको जब युद्ध के संचालन की नीति पर मंत्रणा करनी चाहिए तब वो अपने हिजड़ों की मंडली में रास रंग में व्यस्त रहते हैं। और पिताजी महाराज, कदाचित वो किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए हैं। केवल आप हैं जो आने वाली विभीषिका को टालने का यत्न कर रहे हैं। आप पर हमें गर्व है, महान सेनापति आन्हिलवाड़ की राजकुमारी आज आपको अपना भाई बनाने आई है। इस राखी के धागों को स्वीकार करके मुझे अपनी बहन होने का सम्मान प्रदान करें।“

देवलदेवी थाली से राखी उठाकर इंद्रसेन की कलाई पर बाँधती है। कलाई पर बँधी हुई राखी को देखकर इंद्रसेन की आँखें सजल हो जाती हैं। ”अहोभाग्य एक सेनापति का इतना सम्मान उसकी कलाई पर राजकुमारी स्वयं राखी बाँधे सेनापति और आपका भाई, इंद्रसेन आपको वचन देता है, वह अपनी अंतिम श्वास तक देश, धर्म और आपकी रक्षा करेगा। आप निश्चिंत रहें राजकुमारी, यदि एक तरफ राज्य में अर्कमण्य लोग है तो दूसरी तरफ (बालक की तरफ संकेत करके) मातृभूमि पर सिर कटाने वाले भी हैं।“

देवलदेवी बालक की ओर देखकर, ”क्षमा करें, मेरे पास राखी का एक ही धागा था। शायद आपको अच्छा न लगा हो। मुझे लगा सेनापति जी इस समय अकेले होंगे।“

बालक ”ओह! एक राजकुमारी इतनी सौम्य! विश्वास नहीं होता। हम आ’न्हिलवाड़ की राजकुमारी के सामने खड़े हैं, और वो हमसे इतनी शिष्टता से बात कर रही हैं। शायद राजकुमारी मेरी जाति और कार्य से अनभिज्ञ है।“

देवलदेवी ”हमने आपका और सेनापति जी का वार्तालाप सुना है। हम सब जान गए हैं। सेनापति जी सत्य कहते हैं कर्म से जाति उपकर्ष संभव है। आप भी श्रेष्ठ कर्मों से श्रेष्ठतम जीवन पर अधिकार पा सकते हैं।“

इद्रसेन, ”राजकुमारी जी, आप इतनी छोटी आयु में इतनी गहराई की बातें करती हैं। अवश्य विधाता ने आपके हाथों से किसी विशिष्ट कार्य का प्रारब्ध निश्चित किया होगा। और राजकुमारी एक ही राखी लाने का विषाद न करें। संभवतः नियति आपको और इस बालक को किसी अन्य बंधन के लिए सुरक्षित रखना चाहता था। आप अपने हाथों से इस बालक को तलवार देकर इसे
अन्हिलवाड़ का सैनिक नियुक्त करें।“

देवलदेवी, इंद्रसेन से तलवार लेकर बालक के हाथ में देती है। बालक दोनों हाथ से तलवार ग्रहण करके देवलदेवी के पैरों में झुकता है। देवलदेवी तनिक पीछे हटकर कहती है ”अरे ये क्या! झुकना है तो मातृभूमि के सामने झुको, अपनी जननी के सामने झुको। और उनसे प्राप्त आशीर्वाद तथा भुजाओं की शक्ति से झुका दो उन आतताइयों के सिर, जो बेबसों पर नर-पिशाच की तरह चढ़ दौड़े हों। काटकर फेंक दो उन हाथों को जिन्होंने आतंक का साम्राज्य स्थापित किया। दंड दो उन विधर्मियों को जिन्होंने भगवान सोमनाथ के मंदिर को अपवित्र कर दिया। तुम अभी खड़्ग चलाने में सिद्धहस्त नहीं, पर कल रणभूमि ही तुम्हारी रंगभूमि होगी। पर अब तुम्हें रणभूमि में रणभैरव राग का प्रलय मचाना होगा।“

इंद्रसेन ”बड़ा प्रबल है तेरा भाग्य जो तुझे तलवार चलाने की कला का अभ्यास शत्रु के सरों को काटकर करना है।“

बालक (तलवार को हवा में लहराते हुए) ”राजकुमारी और सेनापति जी, मैं प्रतिज्ञा करता हूँ, आने वाले दिनों में इन म्लेच्छों का नाश इसी तलवार से करूँगा। आप साक्षी रहना इस बात की किस तरह एक अछूत ने राज्य और धर्म की रक्षा की।“

देवलदेवी ”धन्य हो तुम बालक। पर तुमने अपना नाम नहीं बताया।“

बालक ”हम नीच जाति वाले के नाम नहीं होते। समाज नाम रखने का अवसर ही नहीं देता।“

देवलदेवी ”आज अन्हिलवाड़ की राजकुमारी देवलदेवी तेरा नामकरण करती है। धर्म की रक्षा की अग्नि अपने हृदय में प्रज्ज्वलित करने वाले बालक, अब तेरा नाम है ‘धर्मदेव।’ स्मरण रखना।“

बालक ‘धर्मदेव’, (आखें बंद करके) ”इतना सम्मान।“

इंद्रसेन ”हे देवलदेवी! हे धर्मदेव! मैं देख रहा हूँ तुम्हें उन उज्ज्वल नक्षत्रों की तरह जो प्रलय तक सृष्टि में देश और धर्म की रक्षा के लिए अमर रहेंगे। भविष्य की संतति के लिए तुम दोनों उदाहरण बनोगे। मेरी शुभकामनाएँ तुम्हारे साथ हैं।“

देवलदेवी और धर्मदेव एक-दूसरे की तरफ देखते हैं, फिर दोनों आँखें नीची कर लेते हैं। इंद्रसेन आगे बढ़कर दोनों के सिर पर हाथ रखता है।

सुधीर मौर्य

नाम - सुधीर मौर्य जन्म - ०१/११/१९७९, कानपुर माता - श्रीमती शकुंतला मौर्य पिता - स्व. श्री राम सेवक मौर्य पत्नी - श्रीमती शीलू मौर्य शिक्षा ------अभियांत्रिकी में डिप्लोमा, इतिहास और दर्शन में स्नातक, प्रबंधन में पोस्ट डिप्लोमा. सम्प्रति------इंजिनियर, और स्वतंत्र लेखन. कृतियाँ------- 1) एक गली कानपुर की (उपन्यास) 2) अमलतास के फूल (उपन्यास) 3) संकटा प्रसाद के किस्से (व्यंग्य उपन्यास) 4) देवलदेवी (ऐतहासिक उपन्यास) 5) मन्नत का तारा (उपन्यास) 6) माई लास्ट अफ़ेयर (उपन्यास) 7) वर्जित (उपन्यास) 8) अरीबा (उपन्यास) 9) स्वीट सिकस्टीन (उपन्यास) 10) पहला शूद्र (पौराणिक उपन्यास) 11) बलि का राज आये (पौराणिक उपन्यास) 12) रावण वध के बाद (पौराणिक उपन्यास) 13) मणिकपाला महासम्मत (आदिकालीन उपन्यास) 14) हम्मीर हठ (ऐतिहासिक उपन्यास ) 15) अधूरे पंख (कहानी संग्रह) 16) कर्ज और अन्य कहानियां (कहानी संग्रह) 17) ऐंजल जिया (कहानी संग्रह) 18) एक बेबाक लडकी (कहानी संग्रह) 19) हो न हो (काव्य संग्रह) 20) पाकिस्तान ट्रबुल्ड माईनरटीज (लेखिका - वींगस, सम्पादन - सुधीर मौर्य) पत्र-पत्रिकायों में प्रकाशन - खुबसूरत अंदाज़, अभिनव प्रयास, सोच विचार, युग्वंशिका, कादम्बनी, बुद्ध्भूमि, अविराम,लोकसत्य, गांडीव, उत्कर्ष मेल, अविराम, जनहित इंडिया, शिवम्, अखिल विश्व पत्रिका, रुबरु दुनिया, विश्वगाथा, सत्य दर्शन, डिफेंडर, झेलम एक्सप्रेस, जय विजय, परिंदे, मृग मरीचिका, प्राची, मुक्ता, शोध दिशा, गृहशोभा आदि में. पुरस्कार - कहानी 'एक बेबाक लड़की की कहानी' के लिए प्रतिलिपि २०१६ कथा उत्सव सम्मान। संपर्क----------------ग्राम और पोस्ट-गंज जलालाबाद, जनपद-उन्नाव, पिन-२०९८६९, उत्तर प्रदेश ईमेल ---------------sudheermaurya1979@rediffmail.com blog --------------http://sudheer-maurya.blogspot.com 09619483963

One thought on “उपन्यास : देवल देवी (कड़ी १२)

  • विजय कुमार सिंघल

    जातिवाद पर प्रहार करती हुई यह कड़ी बहुत अच्छी लगी. आगे की कड़ियों की प्रतीक्षा है.

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