माँ,वो अंगना, वो कंगना…
अंगना वो अंगना छोटा सा अंगना
माथे की बिंदिया वो हाथों का कंगना
उठे तो वो चमके, झुके तो वो खनके
यूँ हलकी सी मुस्कान अधरों पे बनके
कभी सर पे फेरा तूने हाथ मेरे
कभी है लगाया गले से मुझे रे
पुराना वो अंगना माँ का वो कंगना
अंगना वो अंगना छोटा सा अंगना
सिरहाने सा बनकर सदा हाथ तेरा
रहा है हर एक पल में जो साथ तेरा
मैं सोता तो आँखों में सपने हैं पलते
मेरे रात और दिन सिहरते मचलते
तूने सिखाया है नींदों से जगना
पुराना वो अंगना माँ का वो कंगना
अंगना वो अंगना छोटा सा अंगना
अंगना वो अंगना छोटा सा अंगना
माथे की बिंदिया वो हाथों का कंगना
जो जलता हूँ मैं तो कभी धूप में फिर
कभी जो उदासी दिलों में रही घिर
वहीँ कुछ सुनहरी सी यादें तेरी
हैं बन आती छैय्यां हमेशा घनेरी
राहों के पत्थर से सिखातीं संभालना
अंगना वो अंगना छोटा सा अंगना
माथे की बिंदिया वो हाथों का कंगना
मेरी आँखों में दिए जल उठे फिर
ये आंसू नहीं हैं ये बहता मेरा दिल
हर एक याद में हूँ तुझे ढूंढता मैं
हर एक सांस में हूँ तुझे पूजता मैं
मैं रहूँ साथ तेरे मगर तू है संग ना
पुराना वो अंगना माँ का वो कंगना
अंगना वो अंगना छोटा सा अंगना
अंगना वो अंगना छोटा सा अंगना
माथे की बिंदिया वो हाथों का कंगना
सौरभ कुमार

परिचय - सौरभ कुमार दुबे
मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार! कविता मेरा जीवन सार मेरी भावना का विस्तार छंद छंद में नयी कल्पना नयी क्रांति हेतु उदगार
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वाह वाह ! बहुत सुन्दर !!