राजनीतिसामाजिक

लक्ष्मण के कार्टूनों में मफलर की कमी थी !

जी आज एक आम आदमी मफलर पहनने तक की औकात हासिल कर चूका है और यह मफलर किसी को उसके गले का फंदा बन डराने तक की ताकत हासिल कर चूका है यह आज दुनिया देख ही रही है ! लेकिन इस देश के महान कॉमन मैन हितैषी श्री आर के लक्ष्मण को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुवे मैं एक कॉमन मैन के कॉमन मैन से एक मफलर धारी आम आदमी तक के सफ़र का श्रेय भी उनको देना चाहूँगा ! क्यूँ की किसी को भी वो असल में क्या है इसका एहसास कराये बिना वो अपने उत्थान के लिए नहीं तैयार होता ! और अगर यह एहसास सिर्फ वोटो के लिए न हो तो इसे वह वास्तव में सीरियसली लेता है ! और अगर वोटो के लिए हो तो वह आर के लक्ष्मण का कॉमन मैन बने रहने में ही अपनी भलाई समझता है !

और आर के जी का अपने कार्टूनों द्वारा यह अहसास दिलाना कभी किसी के वोट का मोहताज नहीं रहा ! और न ही उनका कॉमन मैन कभी किसी धर्म के भुलावे में जीता हुवा नजर आया ! हर तर्क की कसौटी उसके लिए दो वक्त की रोटी पर कितना खरा उतरती है यही उसका स्पष्ट और बेबाक मापदंड रहा ! वो कभी मासूम रहा तो कभी ‘ये पुब्लिक है ये सब जानती है’ की तर्ज पर प्रतिक्रियावादी भी रहा ! लेकिन पुलिस और अदालत की सीढियों से भी कोसो दूर रहने की चाह रखने वाला यह कॉमन मैन कभी पुलिस और अदालत से ऊँची ऊँची सीढियों के राजनैतिक गलियारे में कही भूल कर भी आएगा ऐसा कोई नहीं कह सकता था ! क्यूँ की इस कॉमन मैन की चंद शब्दों की पर्तिक्रिया, वह भी जब उसे अपने परिवार के छोटे से देश की जरूरते पूरी करने के जुगाड़ से थोड़ी बहोत फुर्सत मिल पाती तब तब देकर , या कहें खुद से ही बुदबुदाकर वह संतोष कर लेता था ! और उस आवाज को अपनी लिप्स रीडिंग की भेदक क्षमता रखने वाली आँखों से सुनकर कार्टून के सहारे राजनीति के ठेकेदारों के गलियारे में कभी ठंडी हवा तो कभी सुनामी में तब्दील कराकर पहुंचाने का काम आर के लक्ष्मण करते थे !

लेकिन पिछले कुछ दिनों से इस कॉमन मैन की यह आवाज सुनने का दावा अन्ना हजारे और बाबा रामदेव जैसे समाज के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाले आन्दोलनकारी बन, कर कर रहे थे | और अब अन्ना और रामदेव को जिन्होंने देशव्यापी आन्दोलनकारी बनाया वे लोग वास्तव में कॉमन मैन के हितैषी हैं या फिर अपने आन्दोलन समर्थकों की तरह राजनीती में जाने से परहेज करने वाले अन्ना और रामदेव ? यह पहेली अब तक कॉमन मैन के लिए सुलझना बाकी है |

क्यूँ की राजनैतिक पार्टियों से परेशान आम आदमी को उसके नाम की ही राजनैतिक पार्टी होने और जनांदोलन के राजनैतिक लाभ को अनैतिक होने की बात करने वाले दोनों तरफ के लोगों से कोई आशा की किरण नजर नहीं आई और वह फिर से जबरदस्ती के अच्छे दिन गुजारने पर मजबूर है !

क्यूँ की एक आम आदमी खुद के ही कार्टून द्वारा ही सही लेकिन उसकी भुनभुनाहट को सशक्त आवाज देने वाले आर के लक्ष्मण जैसे कार्टूनिस्टो से न खफा था न खुश था ! क्यूँ की उसीपर बने कार्टून नेताओं की मोटी चमड़ी पर और जहाँ आम आदमी की बात आई की ऊँचा सुनने वाले कानो में कोई असर करती हो या न करती हो लेकिन उसके खुद के मुरझाये चहरे पर अखबार के उस कार्टून वाले कोने में झांकने भर से मुस्कान ले आते थे !

लेकिन जब से उन कार्टूनों में आर के लक्ष्मण के कॉमन मैन के गले में ये आम आदमी मफलर बंधा देख रहा है तब से उसे उसका यह एक मात्र सहारा भी छीन जाने का डर सताने लगा है ! और अब तो आर के लक्षमण भी नहीं रहे की वो इस मफलर वाले आम आदमी के कार्टूनों द्वारा ही सही आम आदमी के मुरझाये चहरे की मुस्कान वापस ले आये | क्यूँ की जिस आर के लक्ष्मण के कॉमन मैन ने बड़े बड़े धुरंधर नेताओं को कार्टून बनने के लिए मजबूर कर दिया था अब आर के लक्ष्मण के जाने के बाद इस कॉमन मैन के गले में मफलर पहनाने वाले केजरीवाल द्वारा दुबारा खुद को कार्टून बनाये जाने से पहले ये नेता एकजुट होकर केजरीवाल और उस बहाने आम आदमी की आवाज को कार्टून बनाने लायक भी न रहने देने की कसम खा लेंगे ये एक बार आम आदमी दिल्ली में देख चूका है !

केवल इसी डर से आर के लक्ष्मण के कॉमन मैन ने कभी आर के लक्ष्मण से ही राजनीती का मफलर बाँधने ये बंधवाने की मांग किये बिना अपने ही कार्टूनों को चुपचाप सहा होगा न ?

सचिन परदेशी

संगीत शिक्षक के रूप में कार्यरत. संगीत रचनाओं के साथ में कविताएं एवं गीत लिखता हूं. बच्चों की छुपी प्रतिभा को पहचान कर उसे बाहर लाने में माहिर हूं.बच्चों की मासूमियत से जुड़ा हूं इसीलिए ... समाज के लोगों की विचारधारा की पार्श्वभूमि को जानकार उससे हमारे आनेवाली पीढ़ी के लिए वे क्या परोसने जा रहे हैं यही जानने की कोशिश में हूं.

One thought on “लक्ष्मण के कार्टूनों में मफलर की कमी थी !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लेख अच्छा लगा.

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