कविता

तीन कवितायें

(1)
कहीं ले कर ना उड़ जाना
मेरे होंसलों को तुम
तुम वक़्त के परिन्दे  हो
कभी तुम ज़मीं पर और
कभी आसमान में उड़ते हो
(2)
उम्मीदों को कोई
सरोकार नहीं होता
तुम्हारी भावनाओं से
वह क़िस्मत के हाथों
बिकी हुई है
(3)
दिलों में दूरियाँ कितनी

उम्र के फ़ासले हैं कम
न जाने कौन से वक़्त
फिसल जाये ज़िन्दगी
किसी को शुक्रिया कह दें
किसी से मांग लें माफ़ी
ना अपने साथ लेकर जाना
किसी की बददुआ बाक़ी

One thought on “तीन कवितायें

  • विजय कुमार सिंघल

    बेहतर कवितायेँ.

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