मुक्तक/दोहाहास्य व्यंग्य

हास्य मुक्तक

 

अरे जिनकी मुहब्बत में खुदी को हम भुला बैठे।
वही हमको पकड़वाने सिपाही को बुला बैठे।
तमन्ना थी कि सावन फिल्म इक हमपर भी बन जाये,
पुलिस स्टेशन के पचड़े में वो हमको ही झुला बैठे॥

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बड़ा जालिम जमाना है, नहीं थोड़ा सुहाता है।
बिना चूल्हा जलाए रात-दिन भेजा पकाता है।
गले लगके चहकता चूम लेता ख्वाब में जो भी,
हकीकत में मिले तो याद से थप्पड़ लगाता है॥

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सुनोगे उनके बारे में? बताए हाल देते हैं।
वो अपनी सुलझनों का रोज हमको जाल देते हैं।
खफा रहते तो मिर्चीदार टाइट चाय बन जाती,
अगर खुश हों तो चीनी सब्जियों में डाल देते हैं॥

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन

2 thoughts on “हास्य मुक्तक

  • गुंजन अग्रवाल

    🙂 🙂

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    हा हा हा किया बात है.

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