सामाजिक

चिठिया हो तो हर कोई बांचे

एक प्यार भरा उपहार ,लिफाफे में बंद एक ऐसा हस्तलिखित कागज,जिसके हर शव्द क्षण भर में सारी दुख तकलीफ़ें छू मंतर कर दे | हाँ , लेकिन इसका हार्दिक होना बेहद जरूरी है | पत्र लिखते रहना चाहिए ,नहीं तो हमारी भावनाएं निर्जीव होने लगती हैं | पर आज हालात कुछ और ही है ,आज पत्र लिखने की जोखिम भला कौन उठाता  है ,झट फोन घुमाना ज्यादा आसान हो गया है, पर पत्र में जो अपनापन ,जो उत्सुकता , जो हर्ष छुपा है उसका कोई मोल नहीं | अगर आप एकांत की खोज में हैं तो  पत्र से बेहतर कोई विकल्प नहीं है | यह जीवन की आपाधापी में सबसे सुखद और ईमानदारी भरा पल होता है जब हम सच्चे मन से किसी को पत्र लिखते हैं | जब आप पत्र लिखते हैं तो अपने आप को सबसे बेहतर पहचानते हैं क्योंकि आप अपनी हर अभिव्यक्ति का खुद के आईने में चित्रण करते हैं ,और जैसे ही कोई अनर्गल या बेकार बातें आपके दिमाग में आती है या आप लिख देते हैं तो आप पूरी तरह से स्वतंत्र होते हैं उसे अपने मानस पटल से मिटाने का या कागज के पन्नों को फाड़ने का |

पत्र एक बेहद ही निश्चल अभिव्यक्ति है , जिसके माध्यम से हम अपनी हर संवेदनाओं की प्रस्तुति बड़े ही सहज ढंग से करते हैं | पत्र लिखने के लिए लेखक बनने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि पत्र में हम अपनी दिल के सहज भावनाओं का उद्गार करते हैं ,बहुत कम ही ऐसे पत्र होंगे जिसमें व्यक्ति अनाप-शनाप ,या फूहड़ बातें लिखता है | ठीक इसके विपरीत फोन द्वारा हम हमारे मन में चलने वाली सारी बातें धड़ल्ले से कह देते हैं ,जिसकी वजह से कई बार बात बहुत बिगड़ जाती है | अगर आप किसी बात से दुखी हैं या किसी बात से प्रसन्न है या फिर आत्मग्लानि महसूस कर रहे हैं तो उन संवेदनाओं को आप अपने शब्दों में जरूर लिखें ,क्षणिक और धीमी लाग्ने वाली यह प्रक्रिया अपने स्व को पहचानने की सबसे अच्छी और अचूक प्रक्रिया है | इस यात्रा के दौरान आपका शरीर अपने अंदर चल रही प्रत्येक भावना की शांत अनुभूति करता है और आप सही -गलत का ज्ञान कर सकने में सक्षम होते हैं |

पत्र लिखने से हमारे  शरीर,हमारी सोच और आंतरिक भावनाओं  की पूरी तरह से मंथन हो जाती है और आप अपनी कमियों एवं अच्छाइयों को बेहतर ढंग से जान पाते  हैं | यह एक जादुई ताकत सा ,आपके मन के कोरे कैनवास को कल्पनाओं के अद्भुत रंगों से भर देती है ,यही पत्र लिखने की खाश विशेषता है | यह मस्तिष्क को स्थिरता देता है ,जब आप मन के किसी पीड़ा से भरे रहते हैं तो उन मनोवेगों को कागज पर उतारें और उसे दो-तीन बार पढ़ें आप पाएंगे कि आपके कष्टों का निराकरन करीब-करीब हो गया होता है या फिर मन कोई विकल्प खोज लिया होता है |

तो कलाम उठाइए, गहरी सांसें लीजिए और बस लिखना शुरू कर दीजिए! प्यार ,गुस्सा ,भ्रम जो कुछ भी आपके मन में है बस उसे कागज पर उतारने दीजिए ,पर लिखिए जरूर

संगीता सिंह ‘भावना’, वाराणसी

संगीता सिंह 'भावना'

संगीता सिंह 'भावना' सह-संपादक 'करुणावती साहित्य धरा' पत्रिका अन्य समाचार पत्र- पत्रिकाओं में कविता,लेख कहानी आदि प्रकाशित

2 thoughts on “चिठिया हो तो हर कोई बांचे

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया रोचक लेख ! पत्र लिखने और पाने का मजा ही कुछ और होता था.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    जो पत्रों में अपनी भावनाएं लिख सकते हैं वोह टेलीफून पर नहीं कह सकते . हम मिआं बीवी के ४८ साल पुराने लिखे प्रेम पत्रों को जब कभी पड़ते हैं तो हैरान हो जाते हैं कि उन में लिखे वोह शब्द कहाँ से आ गए थे .

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