राजनीति

आप  का  संताप

       ‘आप’ में जो कुछ हो रहा है उसमें आश्चर्य करने लायक कुछ भी नहीं है। जब नेता सत्ता का लोलुप हो जाय तो वो किसी भी हद तक जा सकता है और अरविंद केजरीवाल ने यही सिद्ध कर दिखाया है। मुझे मालूम है कि मेरी इस बात से कई लोग सहमत नहीं होंगे परन्तु यह एक कड़वा सच है जो मेरे गले के नीचे भी मुश्किल से उतर पाया है। आइये इस आरोप की जाँच करते हैं।

       पिछले विधान सभा चुनाव के दौरान परंपरागत राजनीतिक दलों से किसी भी प्रकार का सहयोग न लेने कि कसम खाने वाली ‘आप’ कांग्रेस की बैसाखी थाम कर सरकार बनाती है। मैंने व मेरे कई साथियों ने इसका विरोध किया था और कांग्रेस द्वारा धोखेबाजी की आशंका भी जतायी थी पर हमारे sms या तो पढ़े ही नहीं गये या नजरअंदाज कर दिये गये । सरकार का गिरना तो तय था क्योंकि ‘आप’ का हर बिल सहयोगी कांग्रेस द्वारा नकारा गया और जिस आशंका की तरफ हम लोगों ने इशारा भी किया था। कांग्रेस से हाथ मिलाने का फैसला मूलतः अरविंद जी का था जिस पर दूसरे बड़े नेताओं ने प्रयोग की इच्छा से सहमति दी थी। ये प्रयोग बुरी तरह से विफल रहा।

       अरविंद जी का दूसरा बड़ा फैसला था सरकार छोड़ना जिसका विपक्ष, खासकर भाजपा ने लोकसभा चुनाव में जम कर लाभ उठाया। कांग्रेस भी बेशर्मों की तरह  शिकार में अपना हिस्सा नोचने लगी। ‘आप’ के इस ढुलमुल रवैये से क्षुब्ध जनता ने लोकसभा चुनाव में अपना गुस्सा दिखा दिया। दिल्ली विधान सभा के पुनर्निर्वाचन में ‘आप’ की अप्रत्याशित जीत का कारण अरविंद के माफी मांगने से ज्यादा भाजपा द्वारा, जिन अच्छे दिनों का वादा वो करती आ रही थी, उस वादे के लिये नौ महीने बाद भी कुछ न किये जाने का था। ये बात भी सत्य है कि अरविंद कांग्रेस से मिल कर दोबारा सरकार बनाने के पक्ष में थे। पर आंतरिक विरोध के चलते, जिसमें मुख्य भूमिका योगेन्द्र जी, प्रशांत भूषण आदि की थी, वे सफल नहीं हो पाये और यही आगे चल कर इनके आपसी तनाव का कारण भी बना। अगर आप को याद हो तो वयोवृद्ध शांति भूषण जी ने अरविंद जी की मानसिकता की तरफ इशारा किया था।

       इन सब बातों से अरविंद जी की सत्ता में आने की कामना साफ जाहिर होती है। और अब, जब की बिल्ली के भागों छींका फूट गया, इसका घिनौना रूप सब के सामने आ गया है। अरविंद जी पहले भी स्थिति को समझ पाने में नाकाम रहे थे और फिर वे अपने उन चाटुकारों की बातों में आ कर, जो सिर्फ़ सत्ता और ताकत के लालची हैं, कांग्रेस और भाजपा के हाथों खिलौना बन चुके हैं । पर लगता है कि वे अपनी भूल से या तो कुछ सीखना ही नहीं चाहते, या फिर उन्हें आदमी की पहचान ही नहीं है।

       दिल्ली नगर निगमों को यह कर अनुदान नहीं दिया जाना कि वे तो केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में हैं, सुनने में तर्क पूर्ण लग सकता है पर हकीकी तौर पर दूरदर्शिता से परे है। तमाम निगम कर्मी, जिनमें सफाई वाले भी हैं, सड़कों पर आ गये हैं और राजधानी की सफाई व्यवस्था चरमरा उठी है। निश्चित तौर पर इसका फायदा भाजपा ऐसी पार्टियाँ उठाएँगी और ‘आप’ को गैरजिम्मेदार घोषित करेंगी। जाहिर है कि ये फैसला उन्हीं स्वार्थी लोगों का होगा जो अरविंद जी को हर वक्त घेरे रहते हैं । इनमें छद्म रूप से भाजपा और कांग्रेस के सदस्य भी हों तो आश्चर्य नहीं है । तमाम तरह की कोशिशों और साज़िशों के बाद जो एक अकूत धन कमाने का और रजशाही ऐशो-आराम का गढ़ बन पाया है, उसको ये परंपरागत दल क्या ऐसे ही समाप्त हो जाने देंगे ? ‘आप’ की राजनीतिक परिकल्पना इन दलों को कभी रास नहीं आ सकती है और इसी उद्देश्य की पूर्ति करने के लिये वे किसी हद तक जा सकती हैं। पर अफसोस कि अरविंद केजरीवाल इन सब चालों को समझ नहीं पा रहे हैं और अभी भी उन्हीं के हाथ की कठपुतली बने हुए हैं।

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।

3 thoughts on “आप  का  संताप

  • मुझे तो यह समझ नहीं आई कि जिस पार्टी को इतना बहुमत हासिल हो उस कि ऐसी हालत ! समझ से परे है .

  • विजय कुमार सिंघल

    आपका लेख अच्छा है लेकिन आपके निष्कर्षों से मैं सहमत नहीं हूँ. आपने केजरीवाल के तानाशाही पूर्ण निर्णयों की जिम्मेदारी उनके आसपास के लोगों पर डाली है, जिनमें से कई आपके अनुसार कांग्रेस या भाजपा के एजेंट हो सकते हैं. यह गलत है. ऐसा ही बहाना कांग्रेस में इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी के बचाव में दिए जाते थे. वास्तव में सारे निर्णय केजरीवाल ने खुद किए हैं. दिल्ली में चुनाव जीत जाने से उनके गलत निर्णय सही नहीं हो जाते.
    आप पार्टी में जो हो रहा है उसके लिए केवल एक व्यक्ति जिम्मेदार है, जिसका नाम है अरविन्द केजरीवाल !

    • मनोज पाण्डेय

      बन्धुवर, आप न हों पर मैं आपकी बात से पूर्णतयः सहमत हूँ। आप अरविंद को अकेले श्रेय देना चाहते हैं तो यह आपका बड़प्पन है पर मैं इस विडम्बना का आनन्द दूसरों को भी दना चाहता हूँ। वैसे भी मुझे नहीं लगता कि अरविंद इतने काबिल हैं। वो गौरांग प्रभु का जुमला है न कि, “It takes two to tango”.

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