कविता

दोहों में महिला कामगार

 

स्त्री – पुरुष कामगार में , करे भेद सरकार।
महिलाओं को पुरुष से , कम मिले है पगार। १

श्रम स्वेद की धारों से , करती भू खुशहाल।
आँधी , वर्षा , ओलों की , सहती हैं वे मार। २

श्रम से ना दम फूलता , बहाती खूब स्वेद।
मुश्किलों को सहकर वे , भरती सब का पेट। ३

नहीं है सिर ढकने की , छत भी उनके पास।
बनाय ओरों के लिए , घर , भवन , शहर खास। ४

अनपढ़ हुई तो क्या हुआ , करती परिश्रम खूब।
सर्दी , गर्मी , वर्षा ऋतु में , काम में रहती डूब। ५

अगर किसी भी क्षेत्र में , न हो स्त्री कामगार।
तो खतरे में पड़ेगा , देश – जग का निर्माण। ६

न मिलती इनको इज्जत , न मिले है पुरस्कार।
ना मिलती शिक्षा – इलाज , होती वे लाचार। ७

रोजी – रोटी के लिए , छुट जाता है गाँव।
कड़ी धूप में काम कर , जग को दें छाँव। ८

तन – मन का गम भुलाने , पिए लेती शराब।
बर्बाद होता परिवार , बेचे जो सरकार। ९

दुकान , ढाबा , घरों में , करें काम दिन – रात।
यौवन में बूढ़ी लगें , कहते मन के घाव। १०

ठेकेदार का शोषण , सहती हैं वे मौन।
अत्याचार की आग से , सुरक्षा करे कौन ? ११

शिक्षित करके इन सब को , करें उनका कल्याण।
जाने अपने हकों को , जिनकी वे हकदार। १२

मानसिक – शारीरिक श्रम, में करे देश भेद .
स्त्री श्रमिक का कम वेतन , ‘ मंजू ‘ होता खेद . १३

करती रोज मजदूरी , सहती धुआँ – दुर्गंध .
बनाय धूप – अगरबत्ती , करें जग में सुगंध . १४

करे जग इनका शोषण , मिलती गाली – मार .
छुट्टी पर काटे वेतन , होती जब बीमार . १५

शहर, महानगर आकर , होय कुसंग शिकार .
गुंडों के जाल में फँस , होय है बलात्कार . १६

जीने के लिए करती , हाड़ – तोड़ वे काम .
नहीं मिलती है पेंशन , सुविधा से नाकाम . १७

बन्धुआ मजदूरी से , चुकाती हैं लगान .
मानवता का हो रहा ,खुला घोर अपमान . १८

ओरों का बुनती वस्त्र , खुद रहे फ़टेहाल।
काँटों का पहने ताज , घर उनका फुटपाथ। १९

जुटी जाती कामों पे , रोते बालक छोड़।
पड़े रहते गुदड़ी पे , मिले न माँ की गोद। २०

बनाए इनका भविष्य , बालक जो गुमनाम।
सरकारी मद्द से ही , मिले इन्हें पहचान। २१

दबी , कुचली , निर्धन ये , सोती भूखे पेट।
दानों को तरसे बच्चे , दुर्दिन खेले खेल। २२

धूप , धुआँ , धूल में वे , ढोती सर पर बोझ।
वेदनाओं को सहकर , करे काम हर रोज। २३

‘ बन्धुआ मुक्ति मुहिम ‘ से , करे समस्या निदान .
पुनर्वास हो इन सब का , बने कठोर विधान . २४

नैतिकता – देश हित में , सरकार करे ध्यान .
दे शिक्षा , स्वास्थ्य सुविधा , राज्य बढ़ाय हाथ . २५

मंजू गुप्ता 

मंजु गुप्ता

जन्म : २१. २. १९५३ , ऋषिकेश , उत्तरांचल शिक्षा : एम.ए ( राजनीति शास्त्र ) , बी.एड शिक्षण : हिंदी शिक्षिका, जयपुरियार सीबीएससी हाईस्कूल, सानपाड़ा नवीमुंबई संप्रति : सेवा निवृत मुख्य अध्यापिका , श्री राम है स्कूल , नेरूल , नवी मुंबई। कृतियाँ :प्रांतपर्वपयोधि काव्य,दीपक नैतिक कहानियाँ,सृष्टि खंडकाव्य,संगम काव्य अलबम नैतिक कहानियाँ , भारत महान बालगीत सार निबंध,परिवर्तन कहानियाँ। प्रेस में : जज्बा ( देश भक्ति गीत ) रुचियाँ : बागवानी , पेंटिंग , प्रौढ़ शिक्षा और सामाजिकता प्रकाशन : देश - विदेश की विभिन्न समाचारपत्रों ,पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। उपलब्धियां : समस्त भारत की विशेषताओं को प्रांतपर्व पयोधि में समेटनेवाली प्रथम महिला कवयित्री , मुंबई दूरदर्शन से सांप्रदायिक सद्भाव पर कवि सम्मेलन में सहभाग , गांधी जीवन शैली निबंध स्पर्धा में तुषार गांधी द्वारा विशेष सम्मान से सम्मानित , माॅडर्न कॉलेज वाशी द्वारा सावित्री बाई फूले पुरस्कार से सम्मानित , भारतीय संस्कृति प्रतिष्ठान द्वारा प्रीत रंग में स्पर्धा में पुरस्कृत , आकाशवाणी मुंबई से कविताएँ प्रसारित , विभिन्न व्यंजन स्पर्धाओं में पुरस्कृत, दूरदर्शन पर अखिल भारतीय कविसम्मेलन में सहभाग । सम्मान : वार्ष्णेय सभा मुंबई , वार्ष्णेय चेरिटेबल ट्रस्ट नवी मुंबई , एकता वेलफेयर असोसिएन नवी मुंबई , मैत्री फाउंडेशन विरार , कन्नड़ समाज संघ , राष्ट्र भाषा महासंघ मुंबई , प्रेक्षा ध्यान केंद्र , नवचिंतन सावधान संस्था मुंबई कविरत्न से सम्मानित , हिन्द युग्म यूनि कवि सम्मान , राष्ट्रीय समता स्वतंत्र मंच दिल्ली द्वारा महिला शिरोमणी अवार्ड के लिए चयन आदि। संपर्क :19, द्वारका, प्लॉट क्रमांक 31, सेक्टर 9A वाशी, नवी मुंबई400703 भारत . फोन : 022 - 27882407 / 09833960213 ई मेल : writermanju@gmail.com

2 thoughts on “दोहों में महिला कामगार

  • विजय कुमार सिंघल

    आपने महिला कामगारों की दशा और व्यथा का अच्छा चित्रण किया है. दोहा छंद का उपयोग अच्छा है, यद्यपि कुछ सुधार अपेक्षित है.

    • aap ko sudhaar lgtaa ho aap ka sudhaar sujhaav kaa svaagat.

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