कविता

कृष्ण की बांसुरी के स्वर

सुबह सुबह बांसुरी बजाकर कृष्ण
पंछियों को जगा रहे हैं
गायों को जगा रहे हैं
पेड़ पौधे फूल बाग़ नदियाँ
कभी ना सोने वाले झरने भी
उनकी बांसुरी की धुन से मदमस्त से
हो गए हैं
अम्बर पर बादल मस्ती में बह रहे हैं
सागर के तट शांत हो गए हैं
धरती पर सूर्य देव के आगमन की तैयारियां हैं
तभी कूकती आई एक कोयल ने कहा
देखो सब जाग गए हैं
लेकिन एक मानव ही है जो ना कृष्ण की
बांसुरी को सुन पा रहा है
ना जाग पा रहा है
वो गहरी नींद में डूबता चला जा रहा है
कृष्ण की बांसुरी केवल आनंद का प्रतीक नहीं है
वो चेतावनी भी है और जागृति भी
उनके अधरों से लगे पाञ्चजन्य से क्रांति उद्घोषित होती है
किन्तु बांसुरी सहज ही तिमिर से घिरी
सुप्त चेतनाओं की जागृति
का स्वर सुनाती है
इसीलिए हे मानव तू भी जाग!

____सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

One thought on “कृष्ण की बांसुरी के स्वर

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत खूब !!

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