बाल कविता

सूरज चाँद में हुई लड़ाई

सूरज चाँद में हुई लड़ाई
खूब हुई थी हाथापाई

घमंडी चाँद बोला अकड़कर
तुमसे प्रकाश न लूंगा दिनकर

सूरज चाँद से छिना सवेरा
चारों ओर छा गया अंधेरा

चाँद बहुत ही था निराश
छँटती नहीं अमावस -रात

जा तारों से हाथ मिलाया
फिर भी नहीं उजाला आया

एक उपाय बस था बाकी
जाकर सूरज से माँगी माफी

रवि मेरा मिटा अंधकार
तुम जीते मैंने मानी हार

दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

One thought on “सूरज चाँद में हुई लड़ाई

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी बाल कविता !

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