कवितापद्य साहित्य

उत्तर दो हे सारथि !

उत्तर दो हे सारथि !

जीवन-संग्राम के मध्यस्थल में

इस काया रथ में बैठकर ……,

मेरा मन-अर्जुन पूछता है

विवेक–सारथि कृष्ण से ,

हे ज्ञान-सारथि ,सुनो !

मुझमें उठ रहे अनंत,अतृप्त

जिज्ञासाओं को,

क्या तुम शांत कर सकते हो ?

राजाओं के युद्ध में कई विकल्प है

जय,पराजय ,संधि या मृत्यु ……

किन्तु जीवन-युद्ध का अंत है केवल मृत्यु ……

क्या है यह मृत्यु ?

शरीर जब स्पंदन हीन होता है ,

श्वांस का प्रवाह जब बंद होता है ,

दिल की धरकने जब रुक जाती है,

लोग कहते हैं ,”वह मर गया है “

हे सारथि ! बताओ ,

कौन मर गया है ?

शरीर ? तू ? या मैं ?

शरीर तो मेरा रथ है

क्या रथ का नाश

तेरा और मेरा भी नाश है ?

अगर रथ नहीं होगा

मैं कहाँ रहूँगा ? तू कहाँ रहेगा ?

क्या तेरा मेरा साथ छुट जायगा ?

 

महाभारत के युद्ध में वासुदेव कृष्ण ने

पांडव-अर्जुन को ऐसा कुछ समझाया था

कितना उसको समझ में आया, नहीं पता

अंत में कृष्ण को अपना विश्वरूप

अर्जुन को दिखाना पडा |

सब योद्धायों को उनके शरीर से

अलग दिखाया था ,

सब के शरीर मृत पड़े थे

किन्तु योद्धा अलग खडे थे |

हे मेरे ज्ञानी सारथि !

क्या तुम मुझे समझाने के लिए

इस शरीर-रथ के जीते जी

हमको इस शरीर से और

शरीर को तुम से अलग कर सकते हो ?

और तीनों को अलग अलग स्थान पर

खडा रख सकते हो ?

अगर ऐसा होता है

तो समझूंगा

मैं अलग हूँ,तुम अलग हो

और यह काया भी अलग है ,

केवल यही काया का ही नाश होता है |

 

यदि नहीं तो

अर्थ यही होगा

तेरा और मेरा

अलग कोई अस्तित्व नहीं

यह शरीर नहीं तो हम भी नहीं |

 

ज्ञानी लोग कहते हैं

शरीर में आत्मा रहती है

वह शाश्वत है ,अमर है |

क्या वो आत्मा तुम हो

या मैं हूँ ?

 

शरीर के बाद

न तुम्हारा कोई अस्तित्व रहता है

और न मेरा |

अत: न तुम अमर हो न मैं,

इसीलिए मैं और तुम में

कोई आत्मा नहीं है

फिर यह आत्मा है कौन ?

क्या यह कोरी कल्पना है ?

 

लोगो ने कल्पना में रचा रखा है

एक स्वर्ग और नरक का खेल, जैसे

धरती पर राजमहल और कैदियों का जेल

हर राज्य में राजमहल और जेल होते हैं

किन्तु कहाँ है देव-स्वर्ग और नरक-जेल ?

 

हे मेरे प्रिय सारथि !

मैं नही हूँ संत-ज्ञानी न महारथी

मैं नहीं ढूंढ पाता इन प्रश्नों का जवाब

जो जानने का दावा करते है

वे चुप हैं ,नहीं देते जवाब ,

स्वर्ग अधिपति इंद्र हैं

नरक (जेल ) अधिपति यम हैं

सभी ग्यानी-ध्यानी शास्त्र के ज्ञाता

यह तो बतलाया है ,

परन्तु स्वर्ग कहाँ है नरक कहाँ है ?

इसका जवाब नहीं दिया है |

इस धरती या और ग्रह पर स्थित है

या केवल कल्पना की उड़ान है ?

हम जैसे अज्ञानी को भ्रमित करने

एक सशक्त हथियार है ,या

खुद ही इस बात से अनभिग्य है

केवल विज्ञ होनें की अभिनय करते हैं |

 

मैं आस्तिक हूँ ,आस्तिक बना रहना चाहता हूँ

ईश्वर की सत्ता में विश्वास करना चाहता हूँ

सात्विक भाव से अनंत तक पहुंचना चाहता हूँ

किन्तु रास्ते में कुछ स्व-घोषित विज्ञ जन है

खुद को ईश्वर का मुनीम बतलाते हैं ,

ईश्वर के नाम से, दर्शन का शुल्क मांगते है

ईश्वर का नाम बेचकर ,वे पेट भरते हैं |

 

हे सारथि ,बताओ

वे कौन हैं जो,

ईश्वर के नाम से शुल्क लेते हैं ?

क्या शुल्क देकर

आज तक किसी को

ईश्वर का दर्शन मिला है ?

मेरे ही नहीं

हर भावुक मन की आस्था

आज खतरे में हैं,

आस्था टूट रही है |

मैं तो भावुक हूँ ,भ्रमित हूँ

अविलम्ब प्रभावित होता हूँ ,

तार्किक तुम ,तीक्ष्ण ,वुद्धि प्रखर

है क्या तुम्हारे पास इन प्रश्नों का उत्तर ?

 

©कालीपद “प्रसाद”

*कालीपद प्रसाद

जन्म ८ जुलाई १९४७ ,स्थान खुलना शिक्षा:– स्कूल :शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ,धर्मजयगड ,जिला रायगढ़, (छ .गढ़) l कालेज :(स्नातक ) –क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान,भोपाल ,( म,प्र.) एम .एस .सी (गणित )– जबलपुर विश्वविद्यालय,( म,प्र.) एम ए (अर्थ शास्त्र ) – गडवाल विश्वविद्यालय .श्रीनगर (उ.खण्ड) कार्यक्षेत्र - राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कालेज ( आर .आई .एम ,सी ) देहरादून में अध्यापन | तत पश्चात केन्द्रीय विद्यालय संगठन में प्राचार्य के रूप में 18 वर्ष तक सेवारत रहा | प्राचार्य के रूप में सेवानिवृत्त हुआ | रचनात्मक कार्य : शैक्षणिक लेख केंद्रीय विद्यालय संगठन के पत्रिका में प्रकाशित हुए | २. “ Value Based Education” नाम से पुस्तक २००० में प्रकाशित हुई | कविता संग्रह का प्रथम संस्करण “काव्य सौरभ“ दिसम्बर २०१४ में प्रकाशित हुआ l "अँधेरे से उजाले की ओर " २०१६ प्रकाशित हुआ है | एक और कविता संग्रह ,एक उपन्यास प्रकाशन के लिए तैयार है !

One thought on “उत्तर दो हे सारथि !

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता !

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