आत्मकथा

स्मृति के पंख – 28

थोड़े दिनों बाद मुझे वही मकान अलाट हो गया। मैंने मण्डी के नजदीक चाहा था, वह मण्डी के नजदीक था, लेकिन मकान खस्ता हालत में था। इसमें एक ही परिवार के 4 लोग दो नीचे और दो छत पर कब्जा किये हुये थे। पहले तो उन लोगों से जबानी बातचीत की कि मकान मेरे नाम अलाट है, आप खाली कर दें। उनमें कोई एक पुलिस का जमादार भी था। उन्होंने मुझे फंसाने की कोई योजना बनाई। जब मुकर्रर तारीख पर मैं कब्जा लेने आया, तो उन्होंने मुझे एक कमरा में बंद कर दिया और कोरे कागज पर दस्तखत करने को कहा। मगर मैं ऐसा कब करने वाला था। मेरे साथ गोरज बहन और उनका लड़का भजन भी थे। भजन ने देखा कि मुझे उन्होंने कमरे में बंद कर दिया है, तो वह भाग कर मण्डी इत्तला कर आया। थोड़ा अंधेरा होते-होते मण्डी से सब आ गये। उन दिनों अपनी हिफाजत के लिये लाठियाँ भी हमारे पास मौजूद थीं। लाठियां लेकर सब पहुँच गये। आते ही मैंने रामलाल गुलाटी की आवाज सुनी। कह रहे थे ‘राधाकृष्ण कहाँ है?’ उस दिन छत वाले कमरों में किसी की शादी होने वाली थी, मेहमान भी आये हुये थे। जब उन्होंने कोई जवाब न दिया, तो सबने लाठियां बरसानी शुरू कर दीं। जो भी सामने आया, उसे खूब मारा। वह जमादार कहने लगा- पुलिस का जमादार हूँ, देख लूँगा। रामलाल गुलाटी ने कहा- वह सुबह देखना, अब हमारी जमादारी देख लो। कुछ लोग गिरे कुछ भागे। दरवाजा उन्होंने खोल दिया।

हमने अपना सामान थोड़ा अन्दर रखा। रात वहाँ ही रहे। दूसरे दिन वह लोग मण्डी में आये और हमसे माफी मांग कर कुछ दिनों के लिये दो कमरे मांगे और दो हमें खाली करके दे दिये। हमने कहा था कि वायदे के मुताबिक दो कमरे खाली करने होगें, पर उन्होंने थोड़े दिन बाद ही वे दो कमरे भी खाली कर दिये। एक नीचे वाले कमरे में ताराचन्द आ गया। बाद में जब उन्हें अपना मकान हमारे नजदीक ही अलाट हो गया, तो वह चले गये। हमने जो पहली दुकान जी0टी0रोड पर कब्जा की थी, वह सरकारी गोदाम के लिये हमसे खाली करवा ली गई और बदले में 3 दुकानें मण्डी के अंदर अलाट कर दीं।

लाला ज्वालादास धवन तो लीडरों को मिलने में ही ज्यादा वक्त गुजारते। उनका अपना खर्च भी था, लेकिन दुकान भी कुछ खर्चा बर्दाश्त करती। किसी ने यह नहीं सोचा कि कितनी मेहनत से उसने फ्रंटियर वालों को बसाने में मेहनत की। लेकिन खर्चा बर्दाश्त करना दुकान में भी मुश्किल लगता। दुकान ऐसी पोजिशन में तो थी नहीं कि खुला खर्चा बर्दाश्त कर सके। जब मेम्बरों के बच्चों को रोटी नहीं मिलती, तो उसका खर्चा सब पर भारी लगता। इस बात पर ज्वालादास के खिलाफ सबने अपनी यह राय दी कि हम उसके साथ नहीं चल सकते। मैंने भी उन लोगों का साथ दिया और फैसला हुआ कि दुकान की बोली कर दी जाये, जिस पार्टी की औकात होगी वह खरीद लेगी और अपने तरीके से काम चलायेगा। बातचीत के बाद एक दिन बोली का मुकर्रर हुआ। हम लोग अगर 20-30 रुपये की बोली देते, तो ज्वालादास 400- 500 रुपये की बोली दे देता। मुझे लगा इस तरह हम दुकान नहीं चला सकते। मैंने सरदार अर्जुन सिंह को कहा- कोई तरीका सोचो जिससे ज्वालादास दुकान बखुशी छोड़ दें। अर्जुन सिंह ने ज्वालादास को कहा- यह दरख्त आपके हाथों लगा है। यह सब गरीब लोग हैं, इसकी छांव में बैठे हैं। इन्हें बैठने दो। आपके लिये काम की कौन सी कमी है। तो ज्वालादास ने मुझसे कहा- ऐसी बात है, तो दुकान आपकी हो गई। मेरे मुनाफा वाले रुपये भगवान सिंह को दे दिये जायें (जो तोल का काम करता था)।

अब हम 10 आदमी रह गये। बाबा भगत सिंह पहले ही चले गये थे। लाला ज्वालादास, गंगा सिंह और अर्जुन सिंह अब अलेहदा हो गये। ज्वालादास कलकत्ता चले गये और वहाँ उनकी मौत हो गई। सरदार गंगा सिंह यहाँ भी सुर्खपोश था और चमकनी जिला पेशावर का रहने वाला था। उसे मेरी जिन्दगी के बारे में सब कुछ पता था। उसने मुझे कई बार कहा- फार्म मंगा देता हूँ, जो तुम्हारा हक है। इसलिये तुम फ्रीडम फाइटर के लिये दरखवास्त कर दो, शहादत भी हम देंगे। तुम अपना हक क्यों छोड़ रहे हो? मैंने कहा- सरदार गंगा सिंह, मैं पहले भी यह कर सकता था। एम0एल0ए0 की तसदीक जरूरी थी, मेरे घर में ही एम0एल0ए0 थे लाला जमनादास तलवाड़। लेकिन मैंने कौन सी बड़ी कुर्बानी दी है, जिसका मुआवजा मुझे मिलना चाहिये। मेरी तरह छोटी मोटी सेवा तो हर हिन्दुस्तानी ने की होगी। मुझे अपने जमीर को नहीं बेचना, अपनी मेहनत मजदूरी से रोटी कमा लूँगा।

अब निर्मला और सुभाष को भी स्कूल दाखिल करवा दिया। एक दफा अम्बाला से गुजर रहा था। स्टेशन पर कालका मेल खड़ी थी। मुझे राज चोपड़ा को मिलने की ख्वाहिश हुई। मेरे पास कपड़े भी नहीं थे, फिर भी जबरिया कालका मेल से सोलन जा पहुँचा। उनके पति नरेन देव चोपड़ा पंजाब यूनिवर्सिटी, सोलन में मुलाजिम थे। मुझे इस तरह अचानक मिलने पर राज को बेहद खुशी हुई। उन्हें अभी तक यह भी पता नहीं था कि कैसे हम लोग इधर आये, कैसे पहुँचे। राज को सब बातें बैठकर उन्हें अपनी बताई कि सब ठीक पहंुच गये और सब लुधियाना में हैं। दूसरे दिन सुबह वापस आ गया। उसी दिन सेठ राम लुभाया, जिसका अटैची केस मेरे पास था और जो हाथरस चला गया था और मुझे ऐसे मिला, जैसे उसे कुछ घबराहट सी थी। मैंने उसे घर लाकर खाना आदि खिलाया। सब खैरियत पूछी। फिर कहा- सेठ साहब, घबराओ मत। आपकी अमानत मेरे पास वैसी ही पड़ी है। खोलकर इसे देख लो। बहुत अच्छा हुआ तुम मिल गये। वरना मेरे दिल में यह रहता कि आप को कहाँ ढूढूँ और उसने जो खुशी महसूस की, मुझे उसके चेहरे की रौनक आज भी याद है।

केवल अब तकरीबन दो साल का हो गया था। अचानक एक दिन नहलाते हुये वह गिर गया और फिर उठ नहीं सकता था। मैं उसे डा0 सोहन लाल के पास ले गया, जो मण्डी के पास ही प्रैक्टिस करते थे। उसने कहा यह मेरे बस का काम नहीं है, इसे अस्पताल ले जाओ। डा0 फौजा सिंह का ब्राउन रोड़ पर प्राइवेट अस्पताल था। उसे दिखलाने पर पता चला कि फालज का हमला है। तकरीबन दो महीने इलाज जारी रहा। चेहरे पर बिजली का करेंट लगाता था और कुछ दवाई भी लगाता था और खान को दवाई भी देता था। अब उसकी सेहत अच्छी हो गई थी और चलने फिरने भी लगा था। लेकिन चलने में भी थोड़ा टेड़ापन बाकी था। उन दिनों मुझे कुछ ज्यादा परेशानी इसलिये हो गई कि पृथ्वीराज की सेहत भी रोजाना गिरती जा रही थी। मुझे कुछ पता नहीं चल रहा था कि कारण क्या है। उसे प्यास ज्यादा लगती थी फिर भी होंठ खुश्क होते। मैंने लस्सी आदि का इस्तेमाल ज्यादा कराया, लेकिन उससे भी कोई फायदा नहीं हुआ। बाद में उसका सिर भी चकराने लगा, तो मैंने डा0 फौजा सिंह को दिखलाया। उसने पेशाब टेस्ट कराने को कहा और टेस्ट के बाद टीके लगाने शुरू कर दिये। डाक्टर ने काफी दिनों तक मुझे कुछ कहा नहीं, तो मैंने पूछा कि डाक्टर साहब कब तक इलाज जारी रहेगा। उसका जवाब सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ। उसने कहा- मेरी जिन्दगी में यह दूसरा केस है। इतने छोटे बच्चे को शुगर का दर्द, तो इसी तरह ऐहतियात व परहेज से ही जीवन बिताना होगा। उसने मुझे पेशाब टेस्ट कराने के बारे में भी बता दिया और कहा कि इंसुलिन का टीका लगाना जरूरी है। खुराक में शक्कर का इस्तेमाल बिल्कुल न हो, सब्जी, फूट का इस्तेमाल ज्यादा कराना है। क्योंकि रोजाना फौजा सिंह के पास जाना मुश्किल था, मैंने नजदीकी डाक्टर से टीका लगवाना शुरू कराया। बाद में राज पेशाब भी टेस्ट कर लेती और टीके भी लगा लेती।

राधा कृष्ण कपूर

जन्म - जुलाई 1912 देहांत - 14 जून 1990

3 thoughts on “स्मृति के पंख – 28

  • डॉ ज्योत्स्ना शर्मा

    मर्मस्पर्शी !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कितनी कठिन तपस्य है , इतने छोटे बच्चे को डैबितिज़ , यह कैसा जीवन है, गृहस्थ जीवन कितना कठिन है.

  • Man Mohan Kumar Arya

    बहुत ही प्रेरणादायक एवं प्रभावशाली है आज की पूरी क़िस्त। सत्य व धर्म दो ऐसे तत्व व गुण हैं जिससे जीवन फूल की तरह से खिलता है एवं दूसरों को सुगन्धि देता है। मैं अनुभव करता हूँ कि श्री राधा कृष्ण कपूर धर्मात्मा और पवित्रात्मा थे।

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