कविता

खंसनाद

‘आप’ की बदहवासी क्या कहने ।
मफ़लर और टोपी आप के गहने ।
तन पे सुसज्जित नील स्वेटर ।
यही आप सर्वत्र हैं पहने ।

झाड़ू कर खड्ग सी धारण ।
“सब चोर हैं” मंत्रोच्चारण ।
नक्सल पाकी आतंकवादी ।
ये सब तुम्हरे भक्त व् चारण ।

जहाँ भी पड़ते प्रभु पाद ।
सब विकास होता बरबाद ।
“ये सब मिले हुए हैं भैया” ।
गूँज रहा है “खंसनाद” ।

पुनीत “नई देहलवी”

पुनीत नई देहलवी

परिचय: पुनीत गुप्ता पेशे से एक विज्ञापन फ़िल्म निर्माता और छायाचित्रकार हैं। बचपन से ही पुस्तकों से रूचि रही। अबतक कई कहानियां विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। चार विज्ञान-कथा उपन्यास प्रकाशित हैं। एक हास्यकविता संकलन अयन प्रकाशन द्वारा प्रकाशनाधीन है। कई बार देश के सर्वोच्च हास्य कवियों के साथ मंच पर काव्यपाठ करने का मौक़ा मिला है। विश्व प्रसिद्ध कॉमिक टिनटिन सीरीज का हिंदी अनुवाद करने का गौरव भी प्राप्त है।

One thought on “खंसनाद

  • विजय कुमार सिंघल

    हा हा हा करारी व्यंग्य कविता !

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