गीत/नवगीत

गीत- ***** पिता *****

कहीं और हम चले गये हैं लोग झूठ कहते है
देखो घर की छत-दीवारें अब भी हम रहते हैं
घर की ईंट-ईंट में हम हैं
हम मिट्टी-गारे में
तुमने घर को बाँटा तो हम
टूटे बँटवारे में
उस बँटवारे की ज्वाला में अब भी हम दहते हैं
देखो घर की छत-दीवारें अब भी हम रहते हैं
तुम कितना पानी लाते थे
बाहर से भर-भर कर
इसीलिये हमने लगवा दी
थी पानी की मोटर
उसकी मीठी जलधारा में अब भी हम बहते हैं
देखो घर की छत-दीवारें अब भी हम रहते है
बच्चों की खुशियों से बढ़कर
और न हम कुछ चाहें
तुम सब हरदम ही खुश रहना
दिल से यही दुआयें
जब-जब तुम आपस में लड़ते तब-तब हम ढहते हैं
देखो घर की छत-दीवारें अब भी हम रहते है.
डाॅ.कमलेश द्विवेदी
मो.9415474674

One thought on “गीत- ***** पिता *****

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत शानदार गीत, डा साहब !

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