लघुकथा

समय का फेर

समय के साथ सोच बदलता है या अलग अलग मनुज की अलग अलग सोच होती ही है … समय काल कोई भी हो

मेरी शादी में एक दूर के रिश्ते की ननद से मेरी मुलाकात दो चार दिनों की हुई वो बहुत सुलझी हुई लगी

एक दो साल बाद उनकी भी शादी हुई ….. मेरी जब उनसे मुलाकात हुई तो मैं उनसे पूछी …. आप सम्बन्ध विच्छेद कर नई जिंदगी क्यों नहीं शुरू करती हैं उनका जबाब था जैसी किस्मत मेरी भाभी उनमें एक ही कमी है वे बहुत अच्छे इंसान हैं फिर कौन जनता है दूसरा कैसा इंसान मिले … इतने अनाथ बच्चे हैं दुनिया में किसी को गोद ले अपने आँचल भर लुंगी

करीब 29 – 30 बाद मेरे पड़ोसी की लड़की की शादी हुई

फिर एक बार लड़के वालों के धोखे की शिकार एक लड़की हुई

लड़की दो तीन दिन में ही लड़के को तलाक दे अपने नौकरी पर लौट गई

दोनों लड़की के नजरिये से मुझे दोनों का निर्णय मुझे सही लगा

हम हमेशा अपने को आजमायें …. खुद में जितनी सहनशक्ति हो उतनी ही क्षमता की कार्य करें

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

8 thoughts on “समय का फेर

  • शशि शर्मा 'ख़ुशी'

    सच ही कहा आपने विभा जी, हम में जितनी क्षमता हो उतना ही खुद को आजमायें | अपनी क्षमता से बाहर जाकर खुद को आजमाना ठीक नही | बहुत बार जीवन में ऐसी परिस्थितियाँ आ जाती हैं परंतु हमें बहुत सोच समझ कर ही फैसला करना चाहिये,,, मुझे भी दोनों का ही फैसला उचित लगा | बहुत अच्छे विचार रखे हैं आपने |

  • प्रीति दक्ष

    aurat ko zindagi chalani hi hoti hai kisi bhi haal me .. parantu ek baar dhokha khake vishwas hil jaata hai..

  • महातम मिश्र

    बिलकुल सही सम्माननीय विभा जी, जीवन के दृश्य को समझना जरुरी है अन्यथा उलझनें बढ़ जाती है । बहुत अच्छे विचार…..

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      आभारी हूँ आपकी

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    जिंदगी को समझना बहुत मुश्किल है , शादी और तट फट तलाक भी कोई सौलूशन नहीं है किओंकि बहुत दफा हम को ही गलत्फैह्मी हो सकती है . मेरी बेटी की सास बहुत बुरी औरत है ,बेटी ने बहुत मानसिक कष्ट सहे लेकिन अपने बच्चों के भाविष्य को सोच कर और पती के अछे होने की वजाह से जिंदगी को चलाये रखा . अब उन की बेटी एक कम्पनी में मैनेजर है और उन के बेटे ने एक महिना हुआ , कैमिस्ट्री में टॉप ग्रेड में मास्त्र्ज़ डिग्री हासल की है .

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      कुछ बातें थी जो संस्कारवश मैं लिख नहीं सकी थी बड़े बच्चों का साथ हैं यहाँ लेकिन अधूरी बात लगी बाद में मेरे लेखन में
      दोनों की जिनसे शादी हुई वे ना मर्द थे ना औरत

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख। एक ही पैमाना हर किसी पर लागू नहीं होता।

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      जी भाई
      बहुत बहुत धन्यवाद आपका

Comments are closed.