कविता

तुझे क्या कहुं

यूं धर्मो के नाम पर, गर हम बंटे ना होते
ये मंदिर,ये मस्जिद के झगडे ना होते।
बेगुनाहों का खून ,यूं गलियों मे ना बहता
बेवाएं यूं ना तडपती, मासूम यूं अनाथ ना होते॥

तेरी फितरत ने कुदरत को भी, शर्मसार कर दिया
कायनात के ताने बाने को, तार तार कर दिया।
ओ इंसान, तुझे तो उसने अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति कहा
और तूने ही उसके उसूलों को, दरकिनार कर दिया॥

तुझको अन्दाज ही नही, तेरा ये कृत्य क्या कहर ढा रहा है
मगरूर ,अहसान फरामोश तु उस कुदरत को आजमा रहा है।
जिसने नवाजा था तुझे, अपनी बहतरीन इनायतों से
उसी के नाम पर ,तु उसी के बन्दों का लहु बहा रहा है॥

तु इंसान तो नही हो सकता, सोच मे पडा हूं तुझे क्या कहुं
तेरे राक्षसी पाखंड को अधर्म कहूं, या फिर गुनाह कहुं।
सम्बोधन के लिये, क्रूरता का कोई शब्द ही नही मिलता
हे परमात्मा तू ही बता, तेरी श्रृष्टि के इस विकार को में क्या कहुं॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.