कविता

तेरी आवाज

आज मुद्दतों के बाद,
तेरी आवाज सुनी,
कितनी अजनबी सी लगी,
बड़ी गैर की सी लगी.
तेरी आवाज जिसे सुनके,
दिल में खुशी की लहर आती थी,
तेरी आवाज जिन्दगी भरी,
आँखों में सपने दिया करती थी,
तेरी आवाज खनक भरी,
मेरी उम्मीदों को नगमें दिया करती थी,
पर आज मुद्दतों के बाद,
तेरी आवाज सुनी,
कितनी अजनबी सी लगी,
बड़ी गैर की सी लगी.
लगता है अब सीख चुका हूँ,
कैसे भूला जाता है गुजरे वक्त को ,
पर तुम गैर हो,ये ख्याल रुलाता है,
और दिल अश्कों की शक्ल में ,
पिघल सा जाता है ,
लगता है कि अब मुहब्बत,
अपनी उम्र पूरी कर चुकी है,
लगता है मेरे दिमाग में,
अब दुनियादारी भर चुकी है,
तभी तो आँखों में एक अश्क भी ,
ना आया तेरी आवाज सुनकर,
और मैं ये सोचता रहा फोन रख कर,
क्यों आज मुद्दतों के बाद,
तेरी आवाज सुनी,
क्यों अजनबी सी लगी,
क्यों बड़ी गैर की सी लगी?

— माधव अवाना