गीतिका/ग़ज़ल

गजल

मुकाबिल आंधियों के दीप जलना भी जरूरी था
मुसीबत लाख आये ख्वाब पलना भी जरूरी था

अदब के साथ राहों पर चले थे हम सदा साथी
वही देने लगे बाधा बदलना भी जरूरी था

लगी ठोकर जमाने से कदम भी लड़खड़ाए थे
हँसी में हौसलों को तब मचलना भी जरूरी था

समंदर में लहर उठना रवानी का तकाज़ा है
गुहर लेकर बिना डूबे निकलना भी जरूरी था

सुगंधों से भरी देखो गुलाबों की कली न्यारी
बिखरने को हवाओं में टहलना भी जरूरी था

…ऋता शेखर ‘मधु’