हास्य व्यंग्य

आखिर कुर्सी को मुंह खोलना ही पड़ा

आखिर कुर्सी को मुंह ही खोलना पड़ा
(मुफ्त हुए बदनाम, हाय तुझे अपनी गोद में बिठाकर)

अचानक कुर्सी ने मुझे पुकारा और बोली हां जो भी पूछना हो, पांच मिनट में पूछ डालो I
मैं भौचक रह गया, समझ में नहीं आया कि क्या करूं, क्या पूछूं, क्या नहीं पूछूं I हालांकि कई सालों से कुर्सी से बात करने की मैं भरसक कोशिशें करता रहा था, परन्तु उसने कभी मुंह नहीं खोला था I
कुर्सी फिर बोली, मैंने अपनी बदनामी से परेशान होकर ब्रह्माजी की तपस्या की थी, उन्होंने मुझे अपनी निर्दोषिता सिद्ध करने के लिए केवल पांच मिनट दिए हैं, पांच मिनट होते ही मेरी बोलती अपने आप बन्द हो जाएगी I
मैंने एक गहरी सांस ली और खुद को तैयार करने की कोशिश की I
कुर्सीजी ! मेरा पहला सवाल है कि क्या आप पर बैठने वाले को आप अहंकारी, शक्की, झक्की, चमचापसन्द, ईर्ष्यालू, तानाशाह, क्रोधी, निर्मम, बदमिजाज, बदतमीज, या भ्रष्ट वगैरह वगैरह बना डालती हैं ? क्योंकि लोग कहते हैं भैया, हम क्या करें, यह सब तो कुर्सी करवाती है तथा कुर्सी बड़ी कमीनी और कुत्ती चीज है I वे कहते हैं, कुर्सी के कारण सब करना ही पड़ता है I
कुर्सी बोली हां, इसी सनातन बदनामी से दुखी होकर तो मैंने सालों तक तपस्या की है I चलो मैं तुमसे ही पूछती हूं, मैं प्राणवान हूं या कि मुझ पर बैठने वाले ?
अचानक अप्रत्याशित प्रश्न से हतप्रभ मैं अचकचाकर बोला, जी, जी, वो तो आप पर बैठने वाले ही प्राणवान हैं, आप तो निष्प्राण हैं I
फिर कुर्सीजी ने दूसरा सवाल दागा, कुर्सी पर बैठकर अच्छे काम करने वाले भले मानुषों ने कभी बोला है कि यह सब कुर्सी का असर है ?
अचानक लगा कि मेरे दिमाग की सारी बत्तियां जल उठी हैं, मैंने घड़ी की तरफ देखा और तुरत फुरत जवाब दिया- नहीं, कभी नहीं I ऐसे कई लोग आज भी अपनी अपनी कुर्सियों पर विराजमान हैं और वे कुर्सी को अपनी अच्छाइयों का श्रेय कभी नहीं देते हैं I
कुर्सीजी बोली, यही तो, (रुककर) अरे भई, सीधी सी बात है, जो व्यक्ति के भीतर है, वही बड़े पद का अधिकार पाकर बैखोफ प्रकट होने लगता है, इसमें मेरी कोई भूमिका ही नहीं है I
आगे वह बोली एक बात और बताती हूं कि दरअसल होता यह है कि किसी अधपके व्यक्ति को बड़ा पद मिल जाता है तो उसके भीतर की कमीनी वृत्तियां बाहर निकल कर प्रकट होने लगती हैं I इसीतरह विद्यावान, विनयी तथा परिपक्व और बड़प्पन से विभूषित व्यक्ति की अन्दर की अच्छाइयां पद की गरिमा का स्पर्श पाकर जोरशोर से प्रकट होने लगती हैं I सोचो जरा, एक लीटर की क्षमता वाले आधे भरे हुए लोटे में तीन लीटर पानी डालोगे तो क्या होगा ? तीन लीटर तो उसमें समाने से रहा बल्कि भीतर का पानी बाहर आने लगेगा कि नहीं ?
मैंने कहा, हां, छलकेगा ही, परन्तु ..
कुर्सी ने घड़ी की तरफ इशारा किया और कहा सिर्फ दो मिनट बचे हैं, एक महत्वपूर्ण बात बताती हूं, दोनों किस्म के लोगों के बड़े पद पर बैठते ही कुछ शातिर किस्म के कामचोर लोग उन्हें अपनी ठकुरसुहाती बातों के चंगुल में फांसने की कोशिश करते हैं और अक्सर सफल हो जाते हैं I वे उसके आसपास मंडरा कर उसकी बौद्धिक क्षमता को कुंद करने लगते हैं I शुरुआती दौर में बॉस की प्रशंसा करते हैं, बॉस को प्रशंसा की लत लगा देते हैं, फिर वे बड़ी तरकीब से अपना उल्लू सीधा करने के साथ साथ उन लोगों को निपटाने लगते हैं, जिनको वे स्वयं या बॉस नापसन्द करता है I समय कम है, इसलिए थोड़े से संवादों से तुम्हें बात समझाने की कोशिश करती हूं I

(यह एक ऑफिस का दृश्य है, चमचे और बॉस का संवाद)
सर, गुप्तासाहब कह रहे थे कि शर्माजी को पब्लिक सेक्शन से हटाने का आपका निर्णय गलत था I पर सर, मेरी दृष्टि में तो आपने सही समय पर एकदम सही कदम उठाया है, शर्माजी की लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा था, आपसे ज्यादा उनकी पूछपरख होने लगी थी, वैसे आपको तो कोई खतरा नहीं था, पर आपने ठीक ही किया I
बॉस – हां, तुम सच कह रहे हो, मुझे भी यह लग रहा था, इसीलिए उसके पर काटना जरूरी था, हां वह गुप्ता और क्या कह रहा था ?
गुप्ता (चमचा गुप्तासाहब से एकदम गुप्ता पर आ टपका) कह रहा था कि इस निर्णय से विभाग का नुक्सान होगा और हम लोग इसका विरोध भी करेंगे I
लगता है, गुप्ता को भी जल्दी निपटाना ही पड़ेगा I
सर, मैं क्या कहूं, आप को जो ठीक लगे करिएगा I वैसे भी आपके निर्णयों में दूरदृष्टि साफ दिखाई देती है I
सर, एक निवेदन था, मुझे जरा तीन चार घंटे के लिए साढू के यहां जाना था, उधर से गर्मागर्म पेटिस लेते आऊंगा, छोटी बिटिया को खूब पसंद है ना, घर देते हुए निकल जाऊंगा I
अरे, सिन्हाजी आपने तो मेरे मुंह की बात छीन ली, जरूर लेते आइयेगा I
सर, मुझे बिटिया रानी की पसन्द के बारे में पता है I एक बात आपको बतानी थी कि मैंने कुछ ग्रामीणों को आज का समय दिया था, वैसे मैंने वर्माजी को बोल दिया है कि उन्हें कल बुलवा लेना I
अरे ठीक है, कोई वी.आई.पी. थोड़े हैं, कल परसों कभी भी आ जाएंगे I हां भई, तुम्हारे काम से मैं बहुत खुश हूं, इस बार तुम्हारी कान्फिडेन्शियल रिपोर्ट एक्सीलेन्ट लिखने वाला हूं, फिर देखना ये गुप्ता-शर्मा तुम्हारे नीचे काम करते नजर आएंगे, साले I
सिन्हाजी ने भाव विभोर होकर साब के पांव पकड़ लिए I
सिन्हाजी को चरणों से उठाते हुए, बॉस बोले, सिन्हाजी, आप कल बनारस से जो साड़ी लाये थे, पत्नी को बहुत पसंद आई है I (पर्स निकालते हुए) कितने की होगी ?
सर, कैसी बात करते हैं, घर की बात है I बनारस प्रवास की चार दिनों की छुट्टी की अर्जी तो घर पर ही भूल गया हूं, कल लेता आऊंगा I
अरे भई, हम हैं तो काहे की अर्जी ? अर्जी वर्जी छोड़ो, जल्दी जाओ, आपके साढूजी इंतजार कर रहे होंगे I वो कहते हैं न कि सगे में साढू और भोजन में लाडू I
और अनावश्यक हंसी का ठहाका गूंज उठा, हा हा हा I
इतना कह कर कुर्सी बोली, राष्ट्र का दुर्भाग्य है कि चिलमची किस्म के चापलूस लोग घण्टों तक बॉस के आसपास बैठे रहते हैं परन्तु बॉस कभी नहीं पूछता कि तुम अपनी ड्यूटी क्यों नहीं करते हो ?
और ….अचानक ही समय हो जाने के कारण कुर्सी चिर मौन को प्राप्त हो गई I
मैंने मन ही मन ब्रह्माजी और कुर्सीजी को प्रणाम किया और कुर्सीजी की इच्छा का पालन करते हुए इस साक्षात्कार को प्रकाशन के लिए जस का तस भेज रहा हूं I

(सत्य घटनाओं पर आधारित)