मुक्तक/दोहा

मुझे सबसे है प्रीत

पांच दोहे..

 

जग बदले, बदले जग की रीत,

मैं ‘अरुण’ क्यों बदलूं, मुझे सबसे है प्रीत,

 

रार रखना है तो सुनो मित्र, रखो खुद से रार,

छवि न बदले कभी किसी की, चाहे दर्पण तोड़ो सौ बार,

 

समझ बूझकर लो फैसले, समझ बूझकर करो बात,

गोली जैसी घाव करे, मुंह से निकली बात,

 

काग के सिर मुकुट रखे से, काग न होत होशियार,

उड़ उड़ बैठे मुंडेर पर, कांव कांव करे हर बार,

 

कहे ‘अरुण’ सीख उसे दीजिये, पाकर न बोराय,

करे चाकरी राजा की, सीख उसे न भाय,

 

8 सितम्बर, 2015

अरुण कान्त शुक्ला

नाम : अरुण कान्त शुक्ला, ३१/७९, न्यू शान्ति नगर, पुराणी पाईप फेक्ट्री रोड, रायपुर, परिचय : ट्रेड युनियन में सक्रिय था, भारतीय जीवन बीमा निगम से पांच वर्ष पूर्व रिटायर्ड , देशबंधु, छत्तीसगढ़ में लेखन, साहित्य में रुची, लेखों के अलावा कहानी, कविता, गजल भी लिखता हूँ,, मोबाइल नंबर : 9425208198 ईमेल पता : shukla.arunkant@gmail.com

6 thoughts on “मुझे सबसे है प्रीत

  • वैभव दुबे "विशेष"

    काग के सिर मुकुट रखे से, काग न होत होशियार,

    उड़ उड़ बैठे मुंडेर पर, कांव कांव करे हर बार,

    अति सुंदर

  • महातम मिश्र

    बहुत खूब आदरणीय अरुण कान्त शुक्ल जी, कुछ ऐसा करें……जग बदले जगह बदले, बदले जग की रीत
    मै अरुण कैसे बदलू , मेरी सबसे प्रीत ||
    अरुण जी दोहा में १३-११ मात्रा होता है और यति दीर्घ और लघु की होती है | आप का प्रयास सराहनीय है मान्यवर……..

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    दोहा में शायद 13+11 मात्रा होते हैं क्या ?

    • वैभव दुबे "विशेष"

      जी हाँ आदरणीया
      और प्रथम व चतुर्थ चरण में लघु वर्ण हो

  • विजय कुमार सिंघल

    इनमें से एक भी दोहा नहीं है।

    • वैभव दुबे "विशेष"

      सहमत हैं परन्तु भाव अच्छे हैं सर

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