मुझे सबसे है प्रीत
पांच दोहे..
जग बदले, बदले जग की रीत,
मैं ‘अरुण’ क्यों बदलूं, मुझे सबसे है प्रीत,
रार रखना है तो सुनो मित्र, रखो खुद से रार,
छवि न बदले कभी किसी की, चाहे दर्पण तोड़ो सौ बार,
समझ बूझकर लो फैसले, समझ बूझकर करो बात,
गोली जैसी घाव करे, मुंह से निकली बात,
काग के सिर मुकुट रखे से, काग न होत होशियार,
उड़ उड़ बैठे मुंडेर पर, कांव कांव करे हर बार,
कहे ‘अरुण’ सीख उसे दीजिये, पाकर न बोराय,
करे चाकरी राजा की, सीख उसे न भाय,
8 सितम्बर, 2015
काग के सिर मुकुट रखे से, काग न होत होशियार,
उड़ उड़ बैठे मुंडेर पर, कांव कांव करे हर बार,
अति सुंदर
बहुत खूब आदरणीय अरुण कान्त शुक्ल जी, कुछ ऐसा करें……जग बदले जगह बदले, बदले जग की रीत
मै अरुण कैसे बदलू , मेरी सबसे प्रीत ||
अरुण जी दोहा में १३-११ मात्रा होता है और यति दीर्घ और लघु की होती है | आप का प्रयास सराहनीय है मान्यवर……..
दोहा में शायद 13+11 मात्रा होते हैं क्या ?
जी हाँ आदरणीया
और प्रथम व चतुर्थ चरण में लघु वर्ण हो
इनमें से एक भी दोहा नहीं है।
सहमत हैं परन्तु भाव अच्छे हैं सर